काश कि मैं एक पंछी होता
आज बाल-उद्यान पर हम कवयित्री रेनू जैन की बाल रचना लेकर आये हैं। आशा है पसंद आयेगी।
'काश कि मैं एक पंछी होता '
काश कि मैं एक पंछी होता,
नील गगन में मैं उड़ जाता,
दोनों पंख फैला कर अपने,
आसमान को छू कर आता.
जब तुम छत पर आती दीदी,
अपने हाथ में लेकर रोटी,
फुर्र से आता, चूँ चूँ करता,
छीन के रोटी फिर मुड़ जाता.
चाहती तुम दोपहर को सोना,
शोर माचाकर तुम्हें जगाता,
झांकती जब खिड़की से तुम माँ,
चूँ चूँ कर के तुम्हें चिड़ाता.
आसमान में जब उड़ता तो,
चन्दा से भी मिलकर आता,
और तुम्हारे लिए मैं दादी,
चोंच में तारे भरकर लाता.
-रेनू जैन
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21 पाठकों का कहना है :
अच्छा है |
अवनीश तिवारी
it is a wonderful poem by renu chachi.it is very nice.
आसमान में जब उड़ता तो,
चन्दा से भी मिलकर आता,
और तुम्हारे लिए मैं दादी,
चोंच में तारे भरकर लाता.''
सोचती हूँ मैं भी पंछी होती!
बहुत खूब रेणू जी
अच्छी कविता
अच्छा है
wonderful thought specially liked this one
आसमान में जब उड़ता तो,
चन्दा से भी मिलकर आता,
और तुम्हारे लिए मैं दादी,
चोंच में तारे भरकर लाता.
Hope to hear some more in the future. Keep up the good work.
Shayad her vyakti ander hi ander yahi kalpana kerta hai ki kash vah bhi ud paata. Aapne bade hi achche dhang se ise kavita mein utara hai aur behan bhai ka pyar aur nok jhok bhi bakhubi dikhai hai.
Bahut achchi kavita hai...likhte rahiyega....
pakshi hota mai neelgagan ka
meetha fal khaata mai chaman kaa
khuli hava me khule gagan me
rahate ham bhi apani lagan me
title dekhkar ek baar to laga ki meri hi poem hai lekin padhane par laga ki aapki apani hai .aisi hi maine bhi ek poem likhi thi do saal pahale...PAKSHI HOTA MAI NEELGAGAN KA" .aapki kavita bhi achchi lagi...seema sachdev
Good Job!!!Keep it up!!!
fantastic job on your poem Renuji.
it is very nice.
very good
Keep it up.write more and publish more.
अच्छी कल्पना है भाई
बहुत-बहुत बधाई
पर इस पोस्ट में इतने Anonymous कमेंट
यह बात समझ न आई।
Thanks Renu ji aapki kavita padh kar fir se apne bachpan ki yade taaza ho gae.
रेनू जी,
आपने बहुत सुंदर बाल-कविता लिखी है। यह लेखनी अब रुकनी नहीं चाहिए। हम तो चाहते हैं कि आप सुंदर से सुंदर बाल रचनाएँ लिखें। आगे के लिए शुभकामनाएँ।
दर्शक दीर्घा अगर बड़ी हो...
दूर दूर तक भीड़ खडी हो...
चेहरे कहाँ पहिचाने जाते...
मगर तालियाँ सभी बजाते...
यही हुआ संग रेनू जी के...
व्यक्त करें आभार सभी के...
अनोनिमस हो या मय नाम...
सभी को अपना है प्रनाम...
ऐसे ही बस आते रहना...
उत्साह यूँ ही बढ़ाते रहना...
नाम लिखो तो बहुत ही अच्चा...
दुआयें देगा एक एक बच्चा....
रेनू जी आपको एक बिग थेंक्स के साथ एक स्माल थंक्स एक दम फ्री..
रेणू जी , आपकी कविता पड़कर हमे भी पंछी बन उड़ जाने की इच्छा हो रही है , बहुत बढ़िया
पूजा अनिल
काश कि मैं एक पंछी होता,
नील गगन में मैं उड़ जाता,
दोनों पंख फैला कर अपने,
आसमान को छू कर आता.
रेनू जी,आपने बहुत सुंदर बाल-कविता लिखी है।
very nice poem....
रेणू जी,बहुत अच्छे
आलोक सिंघ "साहील"
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