बालगीत: कोई परी कहानी
बेटा तुम्हें सुनाऊं कैसे कोई परी कहानी ?
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली।
मंहगाई से डरी पड़ी है, डलिया सब्ज़ी वाली।
भूखे पेट भजन न होता, बात है बड़ी पुरानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
बहन तेरी बीमार पड़ी है आए उसे बुखार।
बापू श्री के सिर में दर्द है बीत गये दिन चार।
तुझको भी तो लगी हुई है खांसी आनी–जानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
फीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
एक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।
बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली।
मंहगाई से डरी पड़ी है, डलिया सब्ज़ी वाली।
भूखे पेट भजन न होता, बात है बड़ी पुरानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
बहन तेरी बीमार पड़ी है आए उसे बुखार।
बापू श्री के सिर में दर्द है बीत गये दिन चार।
तुझको भी तो लगी हुई है खांसी आनी–जानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
फीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
एक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।
बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
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13 पाठकों का कहना है :
कोई परी कहानी बालगीत बहुत प्यारी रचना है ।
कहानी न कह्ते हुए भी जीवन की पूरी विभीषिका उभर गई है। दुनिया चाहे जिसे कला का नाम दे, मेरे लिए सोद्देश्य लेखन ही महत्वपूर्ण है। साथियों मैं सबको पढता हूँ परंतु व्यक्तिगत कारणों से टिप्पणिया नही कर पाता । जाकिरअली "रजनीश" जी मेरी ओर से बधाई स्वीकारें
यह हमारे समाज की एक विडंबना ही है कि अमीर और गरीब के बीच खाई और गहरी ही होती जा रही है..
जकिर अली जी बहुत सुन्दर है आपकी कविता ,जीवन की सच्चाई को उभारती, हार्दिक बधाई....सीमा सचदेव
ajakir bhai,bahut achhi kavita hai
alok singh "sahil"
वाह जाकिर भाई. उम्दा बाल गीत है.
इतना कड़वा सच बच्चों को इस अवस्था में ही पीना पड़ेगा?
इस बाल कविता में दर्द है जो बाल उद्यान के पाठकों के चेहरों पर मुस्कराहट नहीं ला पायेगी मगर उन्हें सोचने पर जरुर मजबूर करेगी कि यह भी जीवन का एक पहलू है जिस से रूबरू होना जरुरी है.
कल्पना की दुनिया में कोई ज्यादा देर खुश नहीं रह सकता.
भूख लगेगी तो याद आएगा ही कि 'माँ राशन कहाँ से लाएगी?
रजनीश जी कविता बहुत अच्छी है.badhayee sweekaren.
दिल को छू जाने वाले रचना है रजनीश जी ..!!
आप लोगों को रचना पसंद आई, जानकर प्रसन्नता हुई। टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार।
रजनीश भाई पढ़कर आया मेरी आँख में पानी
सच्चाई है घर घर की जो तुमने आज बखानी
परियाँ हो जाती हैं परायी,जो गृहस्थी पड़े चालानी
सच्चाई है घर घर की जो तुमने आज बखानी
हकीकत उघाड़ कर रखी है आपने इस बाल-कविता के माध्यम से
बहुत बहुत साधूवाद
सुंदर और यथार्थपरक रचना है. बधाई!
जाकिर जी,
आपकी रचना इस बार अलग हीं ढंग की है। बालगीत के माध्यम से आपने जीवन की सच्चाई कहने की जो कोशिश की है, वह काबिल-ए-तारीफ है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
kaabil-e-taarif
जाकीर अली जी
परेशानियों से बच्चो को अवगत कराया है
लेकिन बच्चे पर इसका क्या असर पड़ता है यह तो बच्चे ही बता सकते हैं
क्योंकि बच्चे भी अलग अलग स्वाभाव के होते हैं
पर वैसे मज़बूरी और परेशानी बच्चो को जीना सिखा देती हैं
बहुत खूब
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