आना बाना दाना
आना बाना दाना
चिडिया खाये खाना
पेट भरे जब उसका
मस्ती से गाये गाना ।
आना बाना दाना
सैर सपाटे जाना
शेर दिखे जो राह में
सरपट भागे आना ।
आना बाना दाना
टिफिन नही बनाना
टीचर करती गुस्सा
स्कूल नही अब जाना ।
आना बाना दाना
शोर नही मचाना
नींद टूटी दादा की
तो मार तुम ही खाना ।
आना बाना दाना
मौसम है सुहाना
खूब छाए हैं बादल
बारिस में नहाना ।
आना बाना दाना
मेहमां को है आना
मम्मी, पापा आफिस में
घर को हमें सजाना ।
आना बाना दाना
लड्डू खूब खाना
पापा ने पकड़ी चोरी
चले न कोई बहाना ।
आना बाना दाना
चावल है पुराना
भूख लगी है मम्मी
अब तो दे दो खाना ।
आना बाना दाना
सबको खेल खिलाना
करे जो कोई शैतानी
टंगड़ी मार गिराना ।
आना बाना दाना
गाड़ी में घुमाना
धूम मचाएं मिलकर
सीटी तुम बजाना ।
आना बाना दाना
बर्थ-डे है मनाना
सबको है बुलाया
केक बड़ा सा लाना ।
आना बाना दाना
छोड़ो अब सताना
मिलकर झूमें नाचें
छेड़ो कोई तराना ।
कवि कुलवंत सिंह
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6 पाठकों का कहना है :
आना बाना दाना
बहुत अच्छी बाल कविता
बधाई सवीकरें
कवि कुलवंत सिंह ji,
is आना बाना दाना ke chakkar me bhool gay ham apanaa khaana ,bahut achchee kavita.....seema
आना बाना दाना
मजा आ गया, माना।
aapki kavita padhkar accha laga. aapne mera blog padha ar mera hausla badhaya aapka bahut dhanyabad.
वैसे तो बड़ी लम्बी कविता है पर मेरी २ साल की बेटी का दिल इससे नहीं भरा, दो बार पढ़ कर सुनाया तो बात बनी , मुझे भी पढने में मज़ा आया , अच्छी बाल कविता है , बधाई
पूजा अनिल
कुलवंत जी,अच्छी कविता.बच्चे प्रभावित जरुर होंगे.
आलोक सिंह "साहील"
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