सम्मेलन
बच्चों ! जो कविता मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ , वह एक कल्पना-मात्र है। परंतु कोरी कल्पना मानकर इसे निरस्त न कर देना।
एक बार की कहूँ मैं बात,
मुश्किल से मुझे हुई है ज्ञात।
दो धर्मों के हैं जो सुर,
रहते परस्पर कोसों दूर।
सुरसिन्धु में करते स्नान,
सुरेश को आई बात एक ध्यान-
राम-रहीम का हो सम्मेलन,
सेवय्यों का हो तब सेवन,
वे बाबुल और हम हों वर,
उनके आँगन अपने घर ।
नारद मुनि तब दिए दिखाई,
पर वे तो हैं ब्रह्मचारी, भाई ।
इस बात का करके ध्यान,
इंद्र का लगा रहा स्नान ।
महर्षि "टेलीपैथी" से जान,
छेड़े अपनी सुर में तान-
उत्तम राजन आपकी बात,
पर सही नहीं उनके जज्बात,
उनके यहाँ भेजे हम दूत,
मिले सबूत तब हीं साबूत।
इंद्र को बातें समझ में आई,
नारद को यह बात बताई-
आप हीं बने संदेश वाहक,
अरे! यूँ परेशान न हों नाहक।
नारद का बहिश्त में प्रवेश,
लगा उन्हें अपना हीं देश।
प्रधानमंत्री थे मुहम्मद हज़रत,
किया महर्षि का उन्होंने स्वागत।
महर्षि को हुआ तब अचरज,
उनका विचार गया करने हज़।
अल्लाह उठकर लगाए गले,
दौड़ आए उनके दो चेले ।
एक चेला था बहुत हीं कट्टर,
दूजा था उससे कुछ हटकर।
पहले की गई भौंहें तन,
अल्लाह का अशुद्ध हुआ बदन।
दूसरा हुआ बेहद प्रसन्न,
कैसे गई आज बात बन !-
पूछा आने का प्रयोजन,
महर्षि का हर्षित हुआ मन ।
राम-रहीम का हो सम्मेलन,
मिट जाएँ सारे हीं अनबन ।
सम्मेलन के लिए हो तैयार,
अल्लाह ने खोला आने का द्वार।
सम्मेलन स्थल हुआ तब निश्चित-
दरगाह -ए- मोइनुद्दीन चिश्ती।
निश्चित दिवस का हुआ आगमन,
सभी सुर खुद में हीं मगन।
राम-रहीम के लग गए आसन,
आ गए चिश्ती बगैर-बदन ,
मगर दिए वो सब को दिखाई,
उनके लिए भी कुर्सी आई ,
तुलसी, कबीर, सूर, काली भी,
दुर्गा, पार्वती ,लक्ष्मी , काली भी।
इन्द्र को मिला कब्र का भार,
सुरों के लिए भारी सब्र का पहाड़।
राम-रहीम का हुआ आगमन,
तब कहीं शुरू हुआ सम्मेलन।
बातों की लग गई झड़ी,
नारद दिखाते झंडी-हरी।
पर कट्टर चेला दिखा नाखुश,
उसकी मंशा उड़ी बनकर कुश।
सभी विषयों पर हुई बहस,
औरों को बोलने का न साहस।
कब्र में परेशान हुए नाकाधीश,
रहीम न पड़ें राम पर बीस।
राम तभी एक बात उठाए,
त्योहारों में भागीदार हो जाएँ,
रहीम हिलाए हाँ में गरदन,
त्योहारों में साथ हम हरदम।
अब रहीम की आई बारी,
रखें वे बात दिमाग की सारी,
दु:ख-सुख में हम हों साथ,
राम ने बढाया हाँ कह हाथ।
कहते हैं तभी हुई अनहोनी ,
मैत्री की सूरत हुई जब रोनी ,
कट्टरता दिखा गई रंग,
उसने कर दी शांति भंग,
अन्य ताकतों के होकर वश में,
रहीम ने बदली प्रेम की कसमें-
गर हित हमारे टकराएँ,
हम हीं तब आगे हो जाएँ।
इस शर्त्त को मानें राम,
तब कहीं, बहस हुई आम।
हिन्दू-सुरों ने छेड़ी बात,
हमारे मुद्दे रहें हमारे साथ।
राम ने तब भविष्य को जान,
छेड़ी विष भरी मधुर तान-
यदि हुआ मेरे मंदिर को खतरा,
भूलेंगे सारी नीति , सब पतरा,
रहीम हुए इस हेतु तैयार,
हटा तब सम्मेलन का भार।
अपनी कब्र में गए तब चिश्ती,
निकले बाहर धारक-ए-हस्ती,
पर उनका उद्देश्य न हुआ सफल,
टूटा विवाह का स्वप्न-महल ।
राम का चिंतन दे रहा दिखाई,
चहुँओर मंदिर-मस्जिद की लड़ाई।
दो-दो शर्त्त गए हैं टकड़ा,
किसकी शर्त्त बने बलि का बकड़ा।
शर्त्तों पर हीं टिका भाईचारा,
वरना होता दो यह विश्व सारा!!!!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
४ मार्च १९९९
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8 पाठकों का कहना है :
राम की चिंतन दे रही दिखाई,
चहुँओर मंदिर-मस्जिद की लड़ाई।
दो-दो शर्त्त गए हैं टकड़ा,
किसकी शर्त्त बने बलि का बकड़ा।
शर्त्तों पर हीं टिकी भाईचारा,
वरना होता दो यह विश्व सारा!!!!
" अती सुंदर , है तो एक कल्पना , पर कवीता पढ़ते हुए जैसे कल्पना सजीव हो उठती है , जो लिखा है वही नज़ारा सा आंखों के सामने उपस्थित होने लगता है, अच्छा लगा "
Regards
तन्हा जी,
जो आप कल्पना कह रहें है वो मुझे तो हकीकत दिखाई दे रहीं है..
कट्टरता दिखा गई रंग,
उसने कर दी शांति भंग,
अन्य ताकतों के होकर वश में,
रहीम ने बदली प्रेम की कसमें-
गर हित हमारे टकराएँ,
हम हीं तब आगे हो जाएँ।
इस शर्त्त को मानें राम,
तब कहीं, बहस हुई आम।
हिन्दू-सुरों ने छेड़ी बात,
हमारे मुद्दे रहें हमारे साथ।
राम ने तब भविष्य को जान,
छेड़ी विष भरी मधुर तान-
यदि हुआ मेरे मंदिर को खतरा,
भूलेंगे सारी नीति , सब पतरा,
रहीं हुए इस हेतु तैयार,
हटा तब सम्मेलन का भार।
कहीं कहीं काल्पनिक कथ्य भारी पड़ता है परंतु सम्पूर्ण कविता को देखा जाये तो बहुत ही गहरी रचना है.. वरन मुझे तो बाल-कविता नहीं लगी यह बडी गहराई है इसमें..
tanha ji mai bhi bhupender ji ki hi tarah yahi kahana chaahungi ki aapki kavita me itani gaharaai ki baate hai ki baal kavita nahi lagati ,haa kavita bahut pasand aai.....seema
राम की चिंतन दे रही दिखाई,- ram kaa chintan
शर्त्तों पर हीं टिकी भाईचारा, - tika bhaichaara
tanha bhai , badhiya kavita hai, bachcho ko pasand ayegi
आपकी कल्पना बहुत सुन्दर है, बधाई।
तनहा जी आपकी कल्पना बच्चो के अन्दर कल्पना अवश्य जगायेगी
दीपक जी आपकी यह कविता बहुत पसंद आई ..बच्चे भी इसको पसंद करेंगे ..!!
तन्हा भाई,बहुत प्यारी बात कही आपने
आलोक सिंह "साहिल"
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