चित्रकार ,ओ चित्रकार ............
चित्रकार, ओ चित्रकार !
तुम आज वो अनुपम चित्र बना दो ।
बाल विहग मेरा बालापन ,चित्र बना मुझको लौटा दो।
जीवन यौवन यमदूतो ने,
मुझसे हाय !बालधन छीना ..
तुम चित्रितकर बालरूपमय,मुझको बिसरा धन लौटा दो।
निधि मेरी अमूल्य वही थी,
जिसका मूल्य अभी जाना है।
बीत गया तृणकाल उसे ही,
हीरक के सम अब जाना है।
खुशियों का भंडार ,निधि वह मुझको तुम फिर आज दिला दो ।
सरल, सहज उस बाल जगत की,
स्मृतियाँ हैं रंगरंगीली ।
उन रंगों से रंगी हुई हैं,
आँखें मेरी नीली-नीली ।
नीलजटित मेरे नयनों को ,फिर वह इंद्रधनुष दिखला दो।
चित्रकार ,ओ चित्रकार ! तुम आज ये अनुपम चित्र बना दो ।
अलंकृति शर्मा
आठवीं [अ]
केन्द्रीय विद्यालय बचेली
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10 पाठकों का कहना है :
सरल, सहज उस बाल जगत की,
स्मृतियाँ हैं रंगरंगीली ।
उन रंगों से रंगी हुई हैं,
आँखें मेरी नीली-नीली ।
नीलजटित मेरे नयनों को ,फिर वह इंद्रधनुष दिखला दो।
चित्रकार ,ओ चित्रकार ! तुम आज ये अनुपम चित्र बना दो ।
"अलंकृति बहुत सुंदर कोमल व्याखा की है इस कवीता मे , कितना खुबसुरत होता है बचपन और उतनी ही सुन्दरता से आपने अपने मन की बात चित्रकार से कही है"
Loved reading it ya
अलंकृति बहुत ही प्यारा लिखा है...
ढेर सारी शुभकामनायें..
चित्रकार, ओ चित्रकार !
तुम आज वो अनुपम चित्र बना दो ।
बाल विहग मेरा बालापन ,चित्र बना मुझको लौटा दो।
जीवन यौवन यमदूतो ने,
मुझसे हाय !बालधन छीना ..
तुम चित्रितकर बालरूपमय,मुझको बिसरा धन लौटा दो।
आपकी फैन लिस्ट का वजन थोडा सा और अधिक हो गया है देखो देखो मेरा नाम लटक रहा है..
प्रोमिस करो ऐसे ही लिखती रहोगी..
-राघव्
इतने कम उम्र मी इतनी बड़ी अनुभूति का होना बहुत प्रशंसनीय बात है |
ढेरों बधाई |
अवनीश तिवारी
अलंकृति की यह कविता बहुत ही सुन्दर है। इस प्यारी सी कविता के लिए मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई।
पर कविता की बुनावट देख कर मेरे मन में एक संशय उभर रहा है कि क्या कक्षा आठ में पढने वाली बालिका इतनी सुन्दर रचना (जिसमें लय, ताल और छन्द दोष का नामोनिशान न हो) रच सकती है?
अपवादों को छोड दिया जाए, तो सामान्यतया ऐसा नहीं होता है। यदि यह कविता अलंकृति की ही है,तो वह बहुत ही प्रतिभासम्पन्न बालिका है। इस नाते मैं उसका हार्दिक अभिनन्दन करता हूं। किन्तु यदि सच्चाई इससे इतर है, तो "बालउद्यान" के जुडे लोगों को इसके लिए सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि बच्चे अक्सर दूसरों की रचनाएं अपने नाम से छपवाने के लिए दे देते हैं। मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है। मैंने तो हंसकर बात को टाल दिया, किन्तु कई रचनाकार मुकदमेबाजी तक पर उतर आते हैं और फिर मानहानि के रूप में लम्बी-चौडी राशि की माँग करते हैं।
आशा है नन्दन जी मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे और समस्त साथी भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे।
अलकृति आप की कविता बहुत अच्छी है |तुम तो खुद अभी बच्ची हो और तुम्हारे पास तुम्हारा बचपन अभी है |मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ |
इतनी छोटी उम्र मे ऐसी रचना वास्तव मे ही सोचने पर मजबूर कर देती है |मै जाकिर अलि जी की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि कविता को पढने पर लगता ही नही कि यह एक आठवी कक्षा की छात्रा की कविता हो सकती है |कही ऐसा तो नही कि अलकृति जानती ही न हो कि मौलिक रचनाएँ यहाँ पर भेजी जाती है | और अगर यह वास्तव मे ही उसकी मौलिक रचना है तो मै उसके आगे नत्-मस्तक हूँ |.......सीमा सचदेव
अलंकृति वाह वाह
आप तो बहुत अच्छा लिखती है
सच में तुमने इतना अच्छा लिखा है क्या बताऊँ तुम अभी बच्ची जरुर हो मगर सोच और भाव बहुत अच्छे है
आगे इसी तरह लिखते रहना
बहुत आगे निक्लोगी
वहुत अच्छे
कविता बहुत सुंदर लिखी है ..!!बधाई सुंदर रचना के लिए
बहुत सुंदर अलंकृति. इतनी सुंदर कल्पना है की मंत्र मुग्ध हो गई-
सरल, सहज उस बाल जगत की,
स्मृतियाँ हैं रंगरंगीली ।
उन रंगों से रंगी हुई हैं,
आँखें मेरी नीली-नीली ।
बहुत-बहुत बधाई तथा आशीर्वाद
अरे अलंकृत बाबू,बहुत प्यारा लिखा है आपने,मजा आ गया
लगे रहो
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
प्रिय अलंकृति,
मेरे लिये तो यह गर्व का विषय है कि आपने इतनी अच्छी रचना प्रस्तुत की। आपके ही विद्यालय का विद्यार्थी होने के कारण मैं उस विद्यालय और वहाँ के बच्चों की क्षमताओं से बखूबी परिचित हूँ। बधाई स्वीकारें।
डॉ. नंदन,
एसे बच्चे निश्चित ही प्रोत्साहन के पात्र हैं इनकी और भी रचनायें यदि संभव हो ईमेल करें। उनकी विवेचना के बाद बाल-उद्यान में एसे बच्चों को स्थायी स्तंभ प्रदान करना उचित होगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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