अतिथि बाल साहित्यकार- श्री राजकुमार जैन 'राजन'
राजकुमार जैन 'राजन' सुपरिचित बाल साहित्यकार हैं। आप कविता, कहानी एवं नाटक विधाओं के सशक्त रचनाकार है। बाल साहित्य की प्रमुख विधाओं में आपकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। प्रस्तुत है श्री राजन की एक बाल कविता-

हरे पेड़ की छाँव
प्यारी और दुलारी लगती, हरे पेड़ की छाँव।
इसको छोड़ कहीं जाने में, रूक जाते हैं पाँव।
कोयल बैठी, चिडिया बैठी, हमें सुनाती गाना।
जाने वाले राहगीर फिर, लौट यहीं पर आना।
इसी छाँव में खेल खेलते, खुश होते हैं बच्चे।
कभी न चाहो बुरा किसी का, सदा रहो तुम सच्चे।
आओ मिलकर नाचें-गायें, जैसे अपना गाँव।
माँ की ममता सी लगती है, हरे पेड़ की छाँव।।
इसको छोड़ कहीं जाने में, रूक जाते हैं पाँव।
कोयल बैठी, चिडिया बैठी, हमें सुनाती गाना।
जाने वाले राहगीर फिर, लौट यहीं पर आना।
इसी छाँव में खेल खेलते, खुश होते हैं बच्चे।
कभी न चाहो बुरा किसी का, सदा रहो तुम सच्चे।
आओ मिलकर नाचें-गायें, जैसे अपना गाँव।
माँ की ममता सी लगती है, हरे पेड़ की छाँव।।

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4 पाठकों का कहना है :
श्री राजन जी
बहुत अच्छी बाल कविता
काफी कुछ संदेश देती है आपकी कविता
सचमुच अच्छी लगी
अच्छा लगा इन्हें पढ़ना..आभार प्रस्तुति का.
बहुत अच्छी प्यारी सी कवीता , अच्छा लगा पढ़ कर"
Regards
बहुत ही बढ़िया। इस प्रस्तुति के लिए ज़ाकिर जी को धन्यवाद
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