यूँ न पढाई-पढाई करें।
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छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई- पढाई करें।
मम्मी के आंचल में
रहने दे पल दो पल हमें
पापा की गोद में खेलने दे
पल दो पल
ताकि कल को हम जान सके
पहचान से संभाल सके
जीवन को अपने हमें संवार सके
आगे तो पढना है बडा आदमी बनना है
अभी तो, छोटा सा बचपन है
प्यारा सा उपवन है
यूँ न पढाई-पढाई करें।
-रचना सागर
03.04.2008

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
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क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
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तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
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बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
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4 पाठकों का कहना है :
नन्ही कमर पिचक जाती है
इस बस्ते के बोझ से.....
हम तो यारो तंग आ गये
पढ़ाई पढ़ाई हर रोज से.....
कम से कम बचपन तो अपना
जीने तो कुछ मौज से ......
नन्ही कमर पिचक जाती है
इस बस्ते के बोझ से.....
रचना जी बड़े दिनों बाद पधारी हो.. पुनः स्वागत है
और बहुत बहुत धन्यवाद वात्सल्य में डुबोने के लिये..
वैसे आप खुद ही पढ़ा रही हो छुटकी को और खुद ही कह रही हो कि 'यूँ न पढ़ाई पढाई करें'
देखा..... कैसा जमाना आ गया है.. :)
रचना जी
बिल्कुल ठीक कहा आपने। बचपन को उन्मुक्त ही रहने देना चाहिए। एक अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई।
गंदी बात ......:)) रचना जी ख़ुद ही तो पढाई न कराने की बात कह रही हो और चुटकी बेचारी.....:(? रहम करो नन्ही-मुन्नी पर .......सीमा सचदेव
रचना जी सही कहा , बचपन से ही पढ़ाई का बोझ ठीक नहीं है ......पर तेजी से आगे बढ़ती दुनिया में कोई और उपाय भी तो नहीं बचता ....!!! बच्चे चाहें या ना चाहें , पढ़ाई तो करनी ही होगी .... मजबूरी है ):
^^पूजा अनिल
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