Saturday, January 31, 2009

हमको ऐसा वर दो.....


हमको ऐसा वर दो.....

हमको ऐसा वर दो हे माँ वीणा वादिनी,
हम रहें करम में निरत,भक्ति में मस्त;
कार्य सिधह्स्त,गाएं जीवन की रागिनी
हमको ऐसा........................................
तू सरला,सुफला है माँ,माधुर मधु तेरी वाणी,
विद्या का धन हमको भी दो, हे माँ विद्या दायिनि
हमको ऐसा...................................................
हे शारदे,हँसासीनी,वागीश वीणा वादिनी,तुम
ग्यांन की भंडार हो,हे विश्व की सँचालिनि
हमको ऐसा............................................
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बसंत पंचमी की आप सबको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं


माँ सरस्वती की स्तुतियाँ

सरस्वती को ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। सरस्वती की एक पहचान ब्रह्मा की पत्नी के रूप में भी है। सरस्वती वैदिक युगीन नदी के रूप में पूजी जाती हैं। भारत में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मदनोत्सव, कामोत्सव, वसंतोत्सव के साथ-साथ सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाने की परम्परा है। स्थान-स्थान पर सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर श्रद्धालु यह प्रार्थना करते हैं कि दुनिया में ज्ञान का राज हमेशा कायम रहे।

सरस्वती की महत्ता इसलिए भी अधिक है क्योंकि वैदिक मतों के अनुसार आदिशक्ति (नारायणी या दुर्गा) के तीन रूपों में एक रूप महा सरस्वती का भी है।

बाल-उद्यान की नियमित पाठिका पाखी मिश्रा (कक्षा ६, बाल भारती पब्लिक स्कूल) ने माँ सरस्वती की वंदना का वीडियो यू ट्यूब से खोज निकाला है। आप भी देखें-






26 जनवरी की बाल चित्रकला प्रतियोगिता के उल्लेखनीय चित्र

बाल-उद्यान की ओर से विगत् २६ जनवरी २००९ को आयोजित प्रतियोगिताओं में से चित्रकला प्रतियोगिता के कुछ चित्र हम प्रकाशित कर रहे हैं। चित्रकला प्रतियोगिता को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया था। हम तीनों श्रेणियों के तीन स्थानों पर आये चित्रों के अलावा कुछ उल्लेखनीय पेंटिंग भी प्रकाशित कर रहे हैं। आभ इन बाल चित्रकारों के प्रयासों को अपनी टिप्पणियों का प्रोत्साहन देना न भूलें।

प्री स्कूल- कक्षा १


अपूर्वा, मान्टेशरी २, बाल भारती पब्लिक स्कूल


द्वितीय स्थान- केशा अरोरा, प्री स्कूल, वैंकेटेश्वर ग्लोबल स्कूल


प्रथम स्थान- नित्या कपूर, मान्टेशरी २, डैफोडिल, रेयान इंटरनेशनल स्कूल


कक्षा २ - पाँच


तृतीय- प्रकृति घोष, कक्षा ५, सचदेवा पब्लिक स्कूल


द्वितीय- ईशिता कपूर, कक्षा ५, रेयान इंटरनेशनल स्कूल


प्रथम- गगन, कक्षा ५, महाराजा अग्रसेन माडेल स्कूल


कक्षा छठवीं- आठवीं


तृतीय- मानसी कुमार, कक्षा ६, सचदेवा पब्लिक स्कूल


द्वितीय- हर्षिता नांगिया, कक्षा ६, बाल भारती पब्लिक स्कूल


प्रथम- पाखी मिश्रा, कक्षा ६, बाल भारती पब्लिक स्कूल


प्रथम- साईंईश कौल, कक्षा ८, लॉन्सर्स कॉन्वेंट स्कूल


अन्य उल्लेखनीय चित्र-


आयूष एम, कक्षा ६, महाराजा अग्रसेन मॉडेल स्कूल


अदिति, कक्षा १, बाल भारती पब्लिक स्कूल


ऐश्वर्य झा, कक्षा ५, बाल भारती पब्लिक स्कूल


खुशी बंसल, कक्षा ३, क्विन मैरी स्कूल


सौमित्र, कक्षा ३, रेयान इंटरनेशनल स्कूल


Friday, January 30, 2009

बापू के तीन बन्दर

मोहन दास कर्म चन्द गान्धी
दिलाई हमें जिसने आजादी
दिए उन्होंने नेक विचार
बांटो सब आपस मे प्यार
तीन बन्दरों का सुनो सन्देश
नही होगा फिर कभी क्लेष

देखो अब यह पहला बन्दर
उंगलियां डाली कान के अन्दर
बुराई किसी की कभी न सुनना
जो विरोध न जानो करना

आँखों को हाथों से छुपाया
दूसरे बन्दर ने बताया
देखो न कभी कोई बुराई
जो न कर सको अच्छाई

तीसरा मुँह पर उंगली रखकर
देता है सन्देश यह आकर
बुरी बात कोई कभी न बोलो
सोच समझ कर ही मुँह खोलो

जो इन पर हम करें विचार
बांट सकेन्गे हम भी प्यार
आओ इन्हें हम भी अपनाएं
जीवन को सुखमय बनायें

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Thursday, January 29, 2009

बापू गाँधी

नमस्कार बच्चो,
आपको पता है कल ३० जनवरी को महात्मा गाँधी जी का शहीदी दिवस है। उनका जन्म २ अक्तूबर १८६९ ई. को गुजरात के पोरबंदर शहर में पिता कर्मचन्द तथा माता पुतली बाई के घर हुआ। इन्होंने अहिंसा के बल पर भारत को आजादी दिलाई। ३० जनवरी १९४८ को आप नत्थू राम गोडसे की गोलियों का शिकार हुए और राम-राम कहते हुए आपने अपना शरीर छोड़ा। आपकी समाधि दिल्ली, राजघाट में है जहां लोग उन्हें श्रधांजलि अर्पण करने जाते हैं। आओ मैं आपको उनके जीवन के बारे में कुछ और बताऊं

बापू गाँधी

भारत मां के सपूत महान
गाँधी कर्मचन्द की संतान
मोहन दास नाम था पाया
महा संस्कारों को अपनाया
राम भक्त और सत्यवादी
बिना लड़े ले ली आजादी
अहिंसा का लेकर हथियार
बाँटा मानवता का प्यार
रंग-भेद को दूर भगाया
सत्य का मार्ग अपनाया
करते बुराई का मूक विरोध
नहीं था मन मे कोई प्रतिशोध
बनो हरीश और श्रवण कुमार
थे गाँधी के उच्च विचार
विदेश में रह कर की पढ़ाई
वकालत की डिग्री भी पाई
भारत आकर कार्य सीखा
गए इक बार दक्षिण अफ्रीका
हुआ संग में दुर्व्यवहार
अंग्रेजों के तुच्छ विचार
काला कहकर उनको बुलाया
देश गुलाम का वासी बताया
धकेल दिया गाड़ी से बाहर
सोचा गाँधी ने अब जाकर
मेरे देश में मैं ही गुलाम
करना है कुछ ऐसा काम
जिससे हम आजाद हो जाएं
अंग्रेजों को घर से भगाएं
चलाया सत्याग्रह आन्दोलन
मानने लगे उनको भारतीजन
शान्ति का मार्ग अपनाया
भारतवासियों को समझाया
जिसको कभी उचित न जानो
ऐसी बात कभी न मानो
चाहे कितना भी हो विरोध
पर नहीं लाना मन में क्रोध
न ही मन में नफरत लाना
अहिंसा का मार्ग अपनाना
सागर तट पर नमक बनाया
अंग्रेजों को भी समझाया
गुलाम नहीं है हिन्दुस्तान
है यह ऐसा देश महान
राम-कृष्ण की धरती पावन
नहीं पल सकता यहां कोई दानव
बिन हथियार ही लड़ जाएंगे
देश की खातिर मर जाएंगे
जुल्म किसी पे नहीं करेंगे
पर न गुलामी भी सहेंगे
अनूठे ढंग से लड़ी लड़ाई
देने लगे अंग्रेज दुहाई
विलायती चीजों का बहिष्कार
बंद किया फिरंगी व्यापार
काता सूत बनाई खादी
सत्य कर्म से ली आजादी
बिन हथियार ही किया कमाल
ऐसा था भारत का लाल

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अपने विचार हिन्दी में लिखे


Wednesday, January 28, 2009

आओ करें भारत की सैर - धौली, भुवनेश्‍वर

आओ करें भारत के कुछ विभिन्न हिस्सों की सैर आज चलते हैं धौली, भुवनेश्वर यहाँ कुछ तस्वीरें हैं जो मैंने वहाँ अपने सैर के दौरान ली थी


भुवनेश्‍वर भारत के पूर्व में स्थित उड़ीसा राज्‍य की राजधानी है। प्राचीन काल में यह कलिंग के नाम से जाना जाता था। यह बहुत ही खूबसूरत और हरा-भरा प्रदेश है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यह जगह इतिहास में भी अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप अशोक एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रुप में परिणत हो गया था।

भुवनेश्‍वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक प्रसिद्ध बौद्ध स्‍थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा है। बौद्ध धर्म की तरह जैनों के लिए भी यह जगह काफी महत्‍वपूर्ण है। प्रथम शताब्‍दी में यहां चेदी वंश का एक प्रसिद्ध जैन राजा खारवेल' हुआ था। इसी तरह सातवीं शताब्‍दी में यहां प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्‍वर वर्तमान में एक बहुसांस्‍कृतिक शहर है।
धौली
धौली भुवनेश्‍वर के दक्षिण में राजमार्ग संख्‍या 203 पर स्थित है। यह वही स्‍थान है जहां अशोक कलिंग युद्ध के बाद पश्‍चात्ताप की अग्नि में जला था। इसी के बाद उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया और जीवन भर अहिंसा के संदेश का प्रचार प्रसार किया। अशोक के प्रसिद्ध पत्‍थर स्‍तंभों में एक यहीं है। इस स्‍तंभ (257 ई.पू.) में अशोक के जीवन दर्शन का वर्णन किया गया है। यहां का शांति स्‍तूप भी घूमने लायक है जो कि धौली पहाड़ी के चोटी पर बना हुआ है। इस स्‍तूप में भगवान बुद्ध की मूर्त्ति तथा उनके जीवन से संबंधित विभिन्‍न घटनाओं की मूर्त्तियां स्‍थापित है। इस स्‍तूप से 'दया नदी' का विहंगम नजारा दिखता है।









तस्वीरें : सीमा कुमार


Tuesday, January 27, 2009

हितोपदेश - १३ बन्दर और मगरमच्छ

नदी कूल जामुन तरु पर
रहता एक स्याना बंदर
मीठे-मीठे जामुन खाता
अपने दोस्तों को भी खिलाता
एक बार उस नदी के अंदर
बनाया एक मगर ने घर
कभी-कभी बाहर आ जाता
थोडा बंदर से बतियाता
धीरे-धीरे हो गई यारी
करते बातें प्यारी-प्यारी
बंदर जामुन तोड के लाता
मगरमच्छ को खूब खिलाता
एक बार बोला यूं मगर
ले जाऊंगा जामुन घर
पत्नी बच्चों को भी खिलाऊं
स्वाद जरा उनको भी चखाऊं
तोड दिए बंदर ने जामुन
खुश थे दोनों मन ही मन
चला मगर अब जामुन लेकर
खिलाए पत्नी को जा घर
खाकर मीठे मीठे जामुन
ललचाया पत्नी का मन
खाए रोज जो ऐसे फल
कैसा होगा उसका दिल
पत्नी मन ही मन ललचाई
मगर को इक तरकीब बताई
ले आओ तुम उसे जो घर
मार के खाएंगे वो बंदर
मगर भी अब बातों मे आया
जा बंदर को कह सुनाया
बैठ जाओ तुम मेरे ऊपर
दिखाऊंगा तुम्हें अपना घर
मानी बंदर ने भी बात
ले ली जामुन की सौगात
बैठ गया वो मगर के ऊपर
चलने लगा मगर जल पर
आया बंदर को ख्याल
किया मगर से एक स्वाल
दिखाना क्यों चाहते हो घर ?
क्या कुछ खास तेरे घर पर
नासमझी मे मगर यूँ बोला
सारा भेद ही उसने खोला
मेरी पत्नी से लो मिल
खाना चाहती है तेरा दिल
सुनकर बंदर हुआ आवाक
पर वो तो था बहुत चालाक
बोला पहले क्यों न बताया
दिल मै घर पर छोड के आया
चलो अभी वापिस जाएंगे
दिल उठाकर ले आएंगे
मुडा मगर वापिस सुनकर
नदी किनारे पर जाकर
कूद गया बंदर तरु पर
कहने लगा ऊपर जा कर
तेरा न कोई बुद्धि से नाता
दिल भी कभी कोई छोड के जाता
जाओ अब यहां कभी न आना
मुझे न तुमको दोस्त बनाना
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चित्रकार- मनु बेतख्लुस जी


बच्चों ने कुछ यूँ मनाया २६ जनवरी


२६ जनवरी को बाल-उद्यान (हिन्दयुग्म) की ओर से आदर्श कुंज, रोहिणी (दिल्ली) के प्रांगण में विभिन्न प्रतियोगितायें आयोजित कराईं गईं। १.५ घंटे तक चले कार्यक्रम की शुरुआत सुबह करीबन ११ बजे हुई। सबसे पहले वहाँ ध्वजारोहण हुआ व उपस्थित बच्चों व अभिभावकों ने राष्ट्रगान गाया। उसके बाद चित्रकला प्रतियोगिता में सभी बच्चों को कक्षा के आधार पर तीन श्रेणी में बाँटा गया। नर्सरी कक्षा, कक्षा तीन से पाँच व कक्षा छह से आठ की तीन श्रेणियाँ थी। छोटे बच्चों को अपने किसी प्रिय व्यक्ति का चित्र बनाने को दिया व बड़ों को जल बचाओ अथवा वृक्ष बचाओ जैसे शीर्षक दिये गये। जिस समय तक बच्चे चित्र बना रहे थे,उस बीच देशभक्ति के गीत बजाये जा रहे थे। जब तक सभी की पेंटिंग को अंक दिये जा रहे थे उनसे सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछे गये और जवाब देने पर उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। उसके बाद चित्रकला प्रतियोगिता के सभी विजेताओं को पुरस्कार दिये गये। अंत में सभी बच्चों की दौड़ भी कराई गई। पूरे कार्यक्रम के दौरान बच्चों व बड़ों ने खूब आनंद लिया। अंत में कार्यक्रम की आयोजक और बाल-उद्यान की संपादिका नीलम मिश्रा ने लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कहा-
"सभी रोहिणी में आदर्शकुंज के निवासियों व साथियों का धन्यवाद करती हूँ ,,जिनके सहयोग के बिना कार्यक्रम शायद सफल नहीं हो सकता था, बच्चों के उत्साह ने फिर से मुझे कुछ पलों के लिए अपने बचपन में पहुँचा दिया, तपन जी अब हम लोग तो एक दूसरे को धन्यवाद तो कहेंगे नहीं, मगर समय पर पहुँच कर जो कुछ कार्यक्रम में आपका
सहयोग मिला, उसके लिए अब क्या कहें बस समझ लीजिए। जल्दी ही एक अगले सफल आयोजन की तैयारी करिए"



स्लाइड-शो


Monday, January 26, 2009

गणतंत्र दिवस पर चली छोटी कूची





प्रणव गौड़, ६ वर्ष


तिरंगा

लाल किले पर झूम तिरंगा,
लहर-लहर लहराता है
इसे देख हम सबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है।

इस झंडे की खातिर हमने
कितने वीर गँवाए
मातृभूमि के रत्न हज़ारों
इस पर दिए लुटाए
केसरिया रंग आज भी इसमें
उनकी याद दिलाता है
इसे देख हम सबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है

भारत है ऋषियों की भूमि
भारत शान्ति प्रदाता
दुख सहकर भी सुख दे देता
ज़रा नहीं घबराता
श्वेत रंग भारत की ऐसी
परिपाटी बतलाता है
इसे देख हम सबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है

संघर्षों के चक्रव्यूह विधि ने
जब भी फैलाए
अभिमन्यु बनकर के हमने
नूतन मार्ग बनाए
संघर्षी की जय होती है
चक्र यही बतलाता है
इसे देख हमसबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है

हरी-भरी भारत की भूमि
हीरे-मोती उगाती
स्वेद-कणों से सिंचित होती
मेहनत से मुस्काती
हरा रंग है हरियाली का
विश्व को यही बताता है
इसे देख हम सबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है।

आज के दिन फिर
सब मिलजुल कर
नव संकल्प बनाओ
एक सूत्र में बँधकर अपना
निखरा राष्ट बचाओ
फिर से दिखा दो दुनिया को
हमें मिलकर चलना आता है
इसे देख हम सबका मस्तक
गर्वोन्नत हो जाता है

सभी बच्चों को ५९वें गणतंत्र दिवस की बधाइयाँ

----शोभा महेन्द्रू


Sunday, January 25, 2009

प्रणाम तुझे भारत माता

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर - इतिहास के आईने में भारत


प्रणाम तुझे भारत माता
प्रणाम तुझे भारत माता
तेरे गुण सारा जग गाता
अनुपम तेरी जीवन गाथा

संघर्षरत रह कर तुमने
अपना यह नाम कमाया है
अपने ही भुजबल से तुमने
अपने को उँचा उठाया है

हम नमन् तुम्हें करते-करते
इतिहास तेरा पढ़ते-पढ़ते
मस्तक श्रद्धा से झुकता है
बस याद तुम्हें करते-करते

वैदिक युग की महारानी तुम
युग परम्परा की परवक्ता
सभय-संस्कृति का मेल तुम्हीं
स्वराज्य यहाँ राज्य करता

लौकिक युग की शहज़ादी को
पलकों पे बिठाया जाता था
दे कर सनडर रूप तुम्हें
जब भाग्य जगाया जाता था

मध्य युग में अर्धांगिनी का
रूप तुम्हें जब दे ही दिया
तो भी तुमने चुपचाप रह
अपने उस रूप को वरण किया

पैरों की दासी बना दिया
जब भारत की महारानी को
तब कौन सहन कर सकता है
माँ की ऐसी कुर्बानी को

कोई बेटा नहीँ यह सह सकता
माँ को दासी नहीँ कह सकता
फिर तेरे बेटों ने ठान ली
माँ की ममता पहचान ली

निकले फिर माँ के रखवाले
सचमुच ही थे वो दिलवाले
बाँध लिया था कफ़न सिर पर
और उठा लिया माँ को मरकर

उन वीरों ने जो खून दिया
और इतना बड़ा बलिदान दिया
कितना वो माँ को चाहते हैं
मर करके यही सबूत दिया

माँ को आज़ाद करा ही दिया
दुश्मन को घर से भगा ही दिया
रक्षा की माँ के ताज़ की
बनी रानी भारत राज की

देश आज़ाद हुआ अपना
वर्षों से था जो इक सपना
माँ ने कितने बेटे खोए
बिन स्वारथ के जो जा सोए

अच्छे- बुरे हम जैसे भी हैं
क्या कम? हम भारतवासी हैं
सर उँचा रहता है अपना आज
क्योंकि अपना है देश आज़ाद

भारत माता है महारानी
हमें स्मरण है वीरों की कुर्बानी
जो इस पर नज़र उठाएगा
वो हमसे नहीँ बच पाएगा
************************

गणतंत्र दिवस की सभी भारतियों को हार्दिक बधाई
भारत माता की जय , वंदे मातरम ,जय हिंद


अब दो नही चार दिन लगेगे

एक बार की बात है, एक बालक को एक बासुरी मिली और वह उसे बजाता रहा और उसे बजाते कई करीब दो माह बीत गये। वह घूमते-घूमते एक शहर में पहुँचा जहॉं बासुरी के बहुत ही विद्वान जानकार पण्डित थे और वह लड़का उनके शिष्य बनने के लिये पहूँचा। गुरू को प्रणाम कर बोला गुरूजी मै कितने दिनो में बांसुरी सीख जाऊँगा ? गुरू जी ने उत्‍तर दिया - तुम्‍हे खीखने मे दो महीने लगेगे। तब वह लड़का बहुत इठलाकर बोला गुरूजी मैने तो पिछले 2 माह से बहुत अभ्‍यास किया हैए तो अब कितना समय लगेगा। तब गुरूजी सोच कर बोलते है कि तुम्‍हे अब 4 चार महीने लगेगे। और लड़का क्रुद्ध होकर चला जाता है।

बाद में गुरूजी के एक सहयोगी ने इसका कारण पूछा तो गुरूजी ने उत्‍तर दिया कि इस बालक में विनम्रता नही है जो आसानी से किसी की बात मान ले दूसरी बात यह कि यह इस बालक ने 2 माह में बहुत गलत अभ्‍यास कर लिया है। जिसे पहले उसे सुधारने में 2 माह लगेगे तब इसे नया सीखने में 2 माह लगेगे।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी चीज का गलत अभ्‍यास नही करना चाहिये, और जहाँ किसी बात में शंका हो तो बड़ो और टीचर से पूछना चाहिये।


Saturday, January 24, 2009

अव्‍वल बन दिखलाना है

बच्चो,
परीक्षा का समय नजदीक आ रहा है,स्कूल में क्रिया कलाप भी बढ़ गए हैं ,कही बसंत मेला तो कहीं गणतंत्र दिवस की तैयारी , काफ़ी व्यस्त हैं आप सभी ,ऊपर से परीक्षा की तैयारी तो आकुल जी ने आप सभी के लिए प्रेरणा पूर्ण कविता भेजी है पढिये ,साथ में एक समय सारणी बनाओ ,कुछ समय खेल का भी निश्चित


करो , जैसे सभी काम निश्चित समय पर किए जाते हैं ,वैसे ही थोडी देर खेलकूद आपके दिमाग को फिर से तरोताजा कर देता है ,इसलिए आकुल जी की इस कविता का आशय है कि पूरे दिन नही खेलेंगे और पढ़ाई में जुट जायेंगे |

अव्‍वल बन दिखलाना है
-आकुल



नहीं खेलना हमको अब, पढ़ने में जुट जाना है.
अच्‍छे नम्‍बर ला कक्षा में, अव्‍वल बन दिखलाना है।

ना देखेंगे टी.वी., ना खायेंगे आइसक्रीम अभी.
मेहनत करके सफल बनेंगे, शौक मौज़ संगीत तभी.
जितना पढ़ा, पढ़ेंगे पहले, सभी पाठ दोहराना है.
अच्‍छे नम्‍बर ला कक्षा में, अव्‍वल बन दिखलाना है।

जल्‍दीसोने, जल्‍दी उठने का अभ्‍यास बनायेंगे।
हल्‍का भोजन, हल्‍की कसरत, तन को स्‍वस्‍थ बनायेंगे.
त्‍यागेंगे आलस्‍य हमें अब, करके कुछ दिखलाना है.
अच्‍छे नम्‍बर ला कक्षा में, अव्‍वल बन दिखलाना है।

माता,पिता, गुरू, साथी सब, हम पर गर्व करेंगे.
आज शहर, कल देश करेगा, यदि कुछ कर गुजरेंगे.
गुजर गया कल डटकर अब, पढ़ने में जुट जाना है.
अच्‍छे नम्‍बर ला कक्षा में, अव्‍वल बन दिखलाना है।

नहीं खेलना हमको अब, पढ़ने में जुट जाना है.
अच्‍छे नम्‍बर ला कक्षा में, अव्‍वल बन दिखलाना है.


Friday, January 23, 2009

मेरी बगिया की नन्ही कली

प्यारे बच्चो ,
कल २४ जनवरी को राष्ट्रीय कन्या-दिवस मनाया जा रहा है
मतलब कल तो लडकियों का दिन है एक बेटी के लिए
किसी माँ के भाव क्या हो सकते हैं , बताती हूँ एक कविता के माध्यम से


मेरी बगिया की नन्ही कली

मेरी छोटी सी बगिया की नन्ही कली
जिसकी खुशबू से महकेगी हर एक गली
मेरा प्यारा सा उपवन भी खिल जाएगा
जब कली को न्या रूप मिल जाएगा
जब बिखेरेगी अपनी वो सुन्दरता
हर तरफ झलेकेगी ऐसी कोमलता
तब बहारों को मिल जाएगी रागिनी
मेरी नन्ही कली को पा अपनी संगिनी
मेरे आंगन मे खुशबू फैलाएगी वो
फूल बन के सदा महकाएगी वो
जब नन्ही कली फूल बन जाएगी
अपनी खुशबू से विश्व को भी महकाएगी
उसकी खुशबू का होगा पूरा विश्व दीवाना
सभी अपने नही कोई होगा बेगाना
उसके हँसने से ही तो हँसेंगे सभी
दर्द दिल को सताएगा न फिर कभी

कन्या-दिवस पर सभी कन्याओं को हार्दिक शुभ-कामनाएं


मेहनत

मेहनत से मिले संसार ।
इसकी माया अपरंपार ॥
सुखमय जीवन का आधार ।
रहे न तन में एक विकार ॥

मेहनत से जो रहता दूर ।
कैसे पाए फल अंगूर ॥
बिन मेहनत न दिखे बहार ।
जीवन हो सूना संसार ॥

मेहनत से न होती हार ।
हर मुश्किल कर जाते पार ॥
मेहनत से मिलता उत्थान ।
जीवन बन जाता वरदान ॥

मेहनत से हो स्वस्थ शरीर ।
तन से पौरुष, मन से वीर ॥
मेहनत हो अपना ईमान ।
सत्कर्मों से बनें महान ॥

मेहनत से होता हर काम ।
कितना ही दुष्कर हो धाम ॥
पर्वत को भी देते फोड़ ।
धार नदी की देते मोड़ ॥

मेहनत से बन जाते भाग ।
जीवन में भर जाते राग ॥
जीवन उनका बनता गीत ।
करते जो मेहनत से प्रीत ॥

कवि कुलवंत सिंह


सुभाष चंद्र बोस से सीखो

प्यारे बच्चो,
आज २३ जनवरी है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिन। वे मानव नहीं महा मानव थे। उनमें इतने अधिक गुण थे, जो किसी एक इन्सान में संभव नहीं। जिस समय नेता जी का जन्म हुआ, भारत गुलाम था। अंग्रेज भारतीयों पर ज़ुल्म करते थे। स्कूलों में भारतीय बच्चों के साथ अन्याय होता था। बालक सुभाष को यह बहुत बुरा लगता। उन्होंने सदा निर्भीकता से इसका विरोध किया। वे दूसरे बच्चों की तरह नहीं थे। वे तो असाधारण बालक थे। कक्षा में सदा प्रथम आते और जब भी कोई अन्याय होता अपनी आवाज़ अवश्य उठाते थे। अंग्रेज भी उनकी बुद्धि की प्रखरता देख चकित रह जाते थे। प्रखर बुद्धि के साथ-साथ वे बहुत स्वाभिमानी भी थे। उन्हें अपना देश अपनी भाषा और अपनी संस्कृति से बहुत प्रेम था। इसी स्वाभिमान के कारण उन्होंने अपने पिता से कह दिया कि मैं मिशनरी स्कूल में नहीं पढ़ूँगा। और उन्होंने ऐसा किया भी।

वे अपने देश और उसकी परम्पराओं से बहुत प्यार करते थे। वे अपने धर्म में आस्था रखते थे। एक बार जाड़े में उनकी माँ ने उनको रजाई ओढ़ा दी और सो गईं। थोड़ी देर में उनकी आँख खुली तो देखा सुभाष नंग-धड़ंग आँखें बन्द किए बैठे हैं। माँ ने पूछा- शिब्बू भीषण जाड़े में यह क्या कर रहा है? वे बोलो- तुमने ही तो बताया था माँ कि शिवजी पहाड़ों पर बैठ कर तपस्या करते हैं। क्या हमको भी उनकी तरह नहीं बनना चाहिए? माँ गद्-गद् हो गई। वे स्वाध्याय किया करते थे। धर्म, दर्शन, साहित्य आदि सब विषयों का अध्ययन करते। उन्होंने विवेकानन्द को पढ़ा था। रामकृष्ण परम हंस को पढ़ा और उनके विचारों को जीवन में उतारा। वे अक्सर सोचा करते- कैसे देश को मुक्त कराऊँ? आपको लगता होगा कि बच्चे क्या कर सकते हैं, पर जानते हो सुभाष ऐसा नहीं सोचते थे। उन्होंने बचपन में ही निश्चय कर लिया था कि मैं अंग्रेजों को देश से निकालूँगा और उन्होंने आजीवन उनकी नाक में दम किए रखा। किन्तु बच्चों इतना सब करने के बाद भी वे अपनी पढ़ाई में पीछे नहीं रहे। सदा प्रथम आते थे। उस समय की सबसे बड़ी परीक्षा आई सी एस उन्होने उत्तीर्ण की। सारा भारत उनपर गर्व करता था।

सुभाष समाज सेवी भी थे। बंगाल में जब बाजुट गए। तब उन लोगों के लिए वो भगवान बन गए। किन्तु सबसे अधिक प्रेम वो अपने देश से करते थे। देश को मुक्त करने के लिए उन्होने आई सी एस की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। उन्होने अपने जैसे नौजवानों की एक सैना बनाई। उनका नारा था-तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। और एक विशाल समूह उनके साथ चल पड़ा। देश की आज़ादी के लिए अपना सुख, चैन और आराम त्याग किया। वे इतने विचित्र थे कि जब उनपर दुख पड़ता, वे और दुख माँगते। कभी न घबराए। अंग्रेजों ने उन्हें बार-बार जेल भेजा, बहुत कष्ट दिए पर सुभाष कहाँ डरते थे?
सुभाष अपने माता-पिता और गुरूजनों का आदर करते थे। कभी भी उनकी आज्ञा का उलंघन नहीं करते थे। वे बहुत अनुशासित भी थे। मानते थे कि जीवन में यदि कुछ पाना है तो अनुशासन का पालन करो और दृढ़ रहो।

सुभाष ने अपने मित्रों का एक दल बनाया और सेवा कार्य में उन्होंने हिन्दु- मुसलमान में कभी भेद नहीं समझा। आपको भी अपने देश के लोगों में भेदभाव नहीं करना चाहिए। सुभाष की तरह वीर, साहसी, परिश्रमी, देश भक्त, सबसे प्यार करने वाला तथा बलिदानी बनना चाहिए। अगर देश के बच्चे सुभाष जैसे बन जाएँगे तो कोई भी हमारे देश को कमजोर नहीं बना सकेगा। यदि कोई तुम्हारे देश की शान्ति को भंग करे तो उसका मुकाबला करो। यह देश तुम्हारा है और इसकी रक्षा तुमको ही करनी है। भारत माता को तुमसे बहुत आशाएँ हैं। आज के दिन यह प्रण लो कि कभी भी अन्याय का साथ नहीं दोगे, किसी के सामने नहीं झुकोगे तथा हमेशा अपने देश और देश वासियों से प्यार करोगे।

जय भारत, जय हिन्द!!


Thursday, January 22, 2009

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी के जन्म-दिवस पर एक कविता

सुभाष चन्द्र जी बोस महान
थे बच्चो वो गुणों की खान
तीक्ष्ण बुद्धि उन्होंने पाई
देते थे अंग्रेज दुहाई
बचपन से ही थे महान
सभ्य,सुसंस्कृत और विद्वान
अपने देश से करते प्यार
प्रभु मे आस्था भी अपार
महा-विचारों को अपनाया
अपना जीवन लक्ष्य बनाया
लडेंगे देश के हित मे लडाई
नव-युवकों की सेना बनाई
दिया एक जन-जन को नारा
है यह हिन्दुस्तान हमारा
खून दो मुझको मै फरियादी
बदले मे दूंगा आजादी
निकल पडे स्व-सेना साथ
ऐसे उनके थे जजबात
भेद-भाव रहित निर्मल मन
करते अनुशासन का पालन
सबको ही देते सत्कार
उत्तम उनके थे विचार
अन्याय संग करी लडाई
देश को आजादी दिलाई
भारत माँ के सपूत महान
माँ के लिए सबकुछ कुर्बान
सौंप दिया था माँ को जीवन
क्या पावन था उनका मन


आप कितने बुद्धिमान हैं ?( मनु जी ने दिया ग़लत उत्तर )

लोटा ले लोटा मगर, मूली मिली न एक.
माचिस लाई छिपकली, चन्द्र-कलाएँ देख.
आचार्य संजीव वर्मा

संजीव जी और तपन जी दोनों के उत्तर सही हैं ,आचार्य जी ने जो उत्तर दोहे में पिरोया है उसे सर्वश्रेष्ठ उत्तर घोषित किया जाता है
इससे सिद्ध होता है कि किसी टोपी वाले के कहने में नही आना चाहिए ,ख़ुद भी देखा ,भाला ,सोचा समझा कीजिये ,कब किसको टोपी पहना दे पता नही (मनु जी कृपया अन्यथा न ले ,उत्तर रोचक बनाने के लिए लिख दिया है )


बाल कविता- बड़ा मज़ा आए

डा0 फहीम अहमद एक प्रतिष्ठित बाल कवि हैं। आपकी अनेक पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें ‘हाथी की बारात’ पुस्‍तक काफी चर्चित रही है। यह पुस्‍तक उत्‍तर प्रदेश हिन्‍दी संस्‍थान, लखनऊ द्वारा सूर पुरस्‍कार से सम्‍मानित है। डा0 फहीम अहमद वर्तमान में मुमताज डिग्री कालेज, लखनऊ में लेक्‍चरर के पद पर कार्यरत हैं और बाल साहित्‍य के भण्‍डार को लगातार भर रहे हैं। आइए पढ़ते हैं उनकी एक बाल कविता- 

बड़ा मज़ा आए
-डा0 फहीम अहमद

हर दिन रहे यूँ,
शरारत का मौसम,
बड़ा मज़ा आए।

खिलते गुलाबों सी, मंद मुस्‍कराहट,
मस्‍त मगन भौरों की, लगे गुनगुनाहट।
मन मे उतर जाए, नदिया की सरगम,
बड़ा मज़ा आए।

मुनमुन ने गु‍ड़िया की खींची जो चोटी,
गुडिया ने काट ली, मीठी चिकोटी।
खुशी उन मुखड़ों से बरस रही झमझम,
बड़ा मज़ा आए।

ऐनक लगा मुन्‍नू, आज बना बूढ़ा।
मम्‍मी सा बाँध लिया, मुन्‍नी ने जूड़ा।
नटखट उमंगों का लहराए परचम,
बड़ा मज़ा आए।


प्रस्‍तुति: जाकिर अली रजनीश


Wednesday, January 21, 2009

श्री कृष्ण जी की बाल-लीलाएं- गोकुल मे आना

नमस्कार बच्चो ,
आज से मै लेकर आऊंगी आपके लिए श्री कृष्ण जी की बाल-लीलाएं
इससे पहले मैने आपको श्री-कृष्ण जन्म-कथा ,
गोवर्धन पूजा (काव्यात्मक-कहानी)
, कृष्ण-सुदामा तथा नरकासुर वध की
श्री कृष्ण से संबंधित कथाएं सुनाईं ,याद हैं न आपको अब पढिए कुछ और बाल-कथाएं
१.गोकुल मे आना

आओ बच्चो तुम्हें बताऊं
बालकथा कान्हा की सुनाऊं
जब कान्हा धरती पर आए
जा रहे थे वासुदेव उठाए
ताकि गोकुल छोड़ के आएं
कंस से अपने सुत को बचाएं
पथ में यमुना पड़ी अपार
कैसे जाएं नदिया पार
अंधियारी काली थी रात
ऊपर से हो रही बरसात
भीग रहा था नन्हा बालक
जो सारी सृष्टि का पालक
एक नाग यह देख के आया
फण फैला कर कर दी छाया
वर्षा से कान्हा को बचाया
यमुना नदी के मन में आया
प्रभु स्वयं यहां चल कर आए
क्यों न वह भी दर्शन पाए
चरण स्पर्श कर पुण्य कमाए
दर्शन पा धन्य हो जाए
सोच के यमुना आई ऊपर
वासुदेव मन में गया डर
गहरे पानी में जाएगा
सुत समेत डूब जाएगा
तभी कान्हा ने किया विचार
निकाल दिया अपना पग बाहर
छू कर यमुना चरण कमल
लगा ज्यों फट गया हो जल
की वसुदेव ने यमुना पार
कृष्ण स्वयं जग पालनहार
कोई भी यह समझ न पाए
यूँ कृष्ण गोकुल में आए
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Monday, January 19, 2009

आप कितने बुद्धिमान हैं ?

आप कितने बुद्धिमान हैं ?
१) गोल मटोल पर न लुढ़कू ,
रहूँ जमीन पर लोटा ,
इतना पर जो न समझे ,
वो है अक्ल का मोटा

२)नीचे उजली ऊपर हरी ,
खड़ी खेत में उलटी परी

३)एक किले में चालीस चोर ,
सबका है मुहँ काला ,
पूँछ पकड़ रगड़ लगाओ
झट कर दे उजियाला

४)छिप देखी अमीन ने ,
छोटी सी वो कली
छत दीवार पर पलती
मारे को धीरे चली

५) घटत बढ़त का चक्र है ,
रूप है अति सलोना
ऐसे आँगन में खेलत
है नाही है जिसका कोना

आप सभी को जवाब देने हैं ,ग़लत उत्तर देने वाला भी बुद्धिमान घोषित किया जायेगा ,जो कोई भी उत्तर नही देगा ,वो
ख़ुद ही समझ जाए कि वो क्या है ?
बहुत सरल है ,कोशिश तो करो भी ।


Saturday, January 17, 2009

आदत का पौधा

किसी एक गाँव में एक लड़का बगीचे में लगे हुए आम और अन्य फल वाले वृक्षों के छोटे -छोटे पौधों को रोज उखाड़ -उखाड़ कर फेंक देता था बेचारा माली हर रोज उसकी जगह पर दूसरा पौधा लगा देता था एक दिन माली ने उस शैतान लड़के को पकड़ लिया और उसे एक बड़े मोटे तने वाले पेड़ के पास ले गया और कहा ,"बेटा !उन छोटे -छोटे पौधों को तो तुमने उखाड़ कर बार -बार फेंक दिया है ,जरा इसे भी उखाड़ कर फेंक दो "लड़का डरा ,सकपकाया और बेचारी सी हालत बनाकर बोला यह तो बहुत मजबूत ,पुराना है मै इसे कैसे उखाड़ कर फेंक सकूंगा ?

माली ने कहा ,बेटा !"आदत का पौधा " भी इसी पेड़ की तरह है ,अगर तुमने बुरी आदत के पौधे को अभी उखाड़ कर नही फेंका तो यह बुरी आदत का पौधा एक बड़ा वृक्ष बन जायेगा और तुम्हारी आदतें स्थायी बने उससे पहले उन्हें छोड़ देने में ही बुद्धिमानी है.

भारतीय योग संस्थान की "योग मंजरी " से साभार


Friday, January 16, 2009

नववर्ष 2009 का स्वागत

नववर्ष 2009 है आया बच्चों
देती शुभकामना आप सबको
पलपल आप का हो अच्छा
ले लो सद्संकल्प तुम सच्चा

हर कोई हो दोस्त तुम्हारा
प्रेमदोस्ती तुम निभाना
करे तुम्हारी कोई निंदा
क्षमा उसे तुम कर देना

भारत महान के तुम हो बच्चे
संयम अहिंसा आदर्श इसके
अपनाके तुम इन व्रतों को
घर जग में उजाला कर दो


करें पिछली गलतियों में सुधार
यही हो नववर्ष का आधार
नैतिकता से गूंजेगा संसार
यही है विश्व शान्ति का सार


धैर्य़ विनम्रता का पहनो गहना
धर्म मर्यादा में तुम को रहना
व्यर्थ न जाए वीरों का बलिदान
युग प्रमाण का बनो तुम वरदान

प्रस्तुत कविता मंजू आंटी ,द्वारा आप लोगों को भेजी गई है ,आप लोग इसे पढिये ,कंठस्थ करके दूसरों को सुनाईये अब मंजू आंटी भी आप लोगों के लिए नित नई सामग्री प्रेषित करेंगी ,इसी विश्वास के साथ


देश हमारा

गाएँगे हम गाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

इसकी माटी तिलक हमारा,
देवलोक सा भारत प्यारा,
कण-कण जिसका लगता प्यारा,
नही किसी से जग में हारा,

जग में मान बढ़ाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

बहे प्रीत की अविरल धारा,
भक्ति से संसार संवारा,
मानवता का बना सहारा,
तीन लोक में सबसे न्यारा,

दिल में सदा बसाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

आँख उठा कर जिसने देखा,
यँ फिर छेड़ी सीमा रेखा,
नही करेंगे अब अनदेखा,
पूरा कर देंगे हम लेखा,

घर घर खुशियाँ लाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, January 15, 2009

हितोपदेश-१२ साधु की पुत्री


किए थे उसने पुण्य अनेक
करता रहता प्रभु की भक्ति
अद्भुत थी उस साध की शक्ति
पर न थी उसकी सन्तान
साधवी समझे यह अपमान
एक बार इक नदी के तीर
साधु बैठा था गम्भीर
कौआ इक उड़ता हुआ आया
मुँह में चुहिया को दबाया
चुहिया उसके मुँह से छूटी
आ के गिरी साधु की गोदि
साधु का हृदय गया भर
ले आया उसे अपने घर
लड़की उसे जादू से बनाया
और पत्नी के सामने लाया
बेटी मान के उसको पाला
हो गया जीवन मे उजाला
इक दिन बेटी हुई स्यानी
अब साधु ने मन मे ठानी
क्यों न उसका ब्याह रचाए
कन्यादान से पुण्य कमाए
वही बनेगा इसका वर
होगा जो सबसे ताकतवर
सोच के गया सूर्य के पास
बोला मेरी बेटी खास
तुम दुनिया में सबसे महान
और मेरा यह है अरमान
मेरी सुता से ब्याह रचाओ
उत्तम वर उसके बन जाओ
लिया सूर्य ने सबकुछ जान
बोला मैं नही हूँ महान
चाँद ज्यो ही नभ में आए
तो वो मुझको दूर भगाए
चाँद ही है वो उत्तम वर
बोलो तुम उससे जाकर
आया साधु चाँद के पास
बोला मेरा करो विश्वास
तुम ही हो वह उत्तम वर
बसाओ मेरी सुता संग घर
सुनकर चाँद ने यूँ फरमाया
उत्तम बादल को बताया
बादल जब नभ में छा जाएँ
तो वो मुझको भी ढँक जाएँ
जाओ तुम बादल के पास
वही होगा उसका वर खास
बादल पास अब आया साधु
बोला तुममे गजब का जादू
तुम ही तो हो सबसे महान
मेरी सुता का करो कल्याण
ठीक हो तुम बादल यूँ बोला
सकुचा के अपना मुँह खोला
मुझसे बड़ा तो पर्वत राज
उसके सिर ही सजेगा ताज
जब भी मैं उससे टकराऊँ
खाली होकर वापिस आऊँ
अब साधु-पर्वत के पास
बोला तुम तो सबसे खास
मेरी पुत्री को अपनाओ
जीवन उसका सफल बनाओ
सुनकर पर्वत कुछ ललचाया
पर साधु को यूँ फरमाया
मुझसे बड़े है चूहे राज
पहनाओ उसके सिर ताज
चीर के रख दे मेरा सीना
मुश्किल कर दे मेरा जीना
बड़ी-बड़ी जो बिल बनाए
तो कोई कुछ न कर पाए
साधु को बात समझ मे आई
चूहे को जा दी दुहाई
थाम लो मेरी सुता का हाथ
दो जीवन भर उसका साथ
बेटी को फिर चुहिया बनाया
चूहे-चुहिया का ब्याह कराया
...................
...................
बच्चो कभी न जाना भूल
नहीं छूटे कभी अपना मूल
इक दिन अपना रँग दिखाए
चाहे कोई कितना भी भरमाए
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चित्रकार-मनु बेतख्लुस जी


Wednesday, January 14, 2009

मकर संक्रान्ति



प्यारे बच्चों !
आज मकर संक्रान्ति है। आज के दिन से सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाता है। चार महीनें की शीत के बाद सूर्य का प्रकाश आशीर्वाद जैसा लगता है। शीत ऋतु में सूर्य की किरणे प्रबल नहीं होतीं, जिससे वातावरण में कीटाणु पैदा हो जाते हैं। नेत्र सम्बन्धी रोग भी इसी कारण होते हैं। सूर्य के उत्तरायण होते ही प्रकाश में तीव्रता आती है। सूर्य की ऊर्जा सभी के लिए आरोग्य लेकर आती है। आज के दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है और पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस दन दान की भी परम्परा है। यह हमारी संस्कृति है कि हम पहला अन्न या फल दान करते है।
जानते हो बच्चों महाभारत में भीष्म पितामाह ने इसी अवसर की प्रतीक्षा की थी। उन्होने मृत्यु को सूर्य के उत्तरायण आने तक रूकने को कहा था । इस समय से मौसम में परिवर्तन हो जाता है। इसके बाद सभी शुभ कार्य किए यह त्योहार फसल पकने पर मनाया जाता है। इसी लिए भारत के अधिकतर राज्यों में मनता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति, पंजाब में लोहड़ी, दक्षिण में पोंगल और आसाम में बीहू के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन पतंग उड़ाने का चलन है। रंग-बिरंगी पतंगें वातावरण को रंगीन और सुहावना बना देती हैं। इसमें पहला अनाज दान दिया जाता है।
आज गणेश चतुर्थी भी है। माँ ने बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाई हैं ना ? त्योहार हमारे जीवन की नीरसता को दूर कर उसमें सरसता ले आते हैं। इसलिए इनका भरपूर आनन्द उठाना चाहिए। इति जाते हैं।


Monday, January 12, 2009

स्वामी विवेकानंद

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहाँ उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ।

सन्‌ 1884 में श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि नरेंद्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।

रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।

-पाखी मिश्रा
छात्रा- कक्षा ६
साभार- विकिपीडिया


पक्षियों की पहचान

नमस्कार बच्चो,
आज मै आपको पहचान कराऊंगी प्यारे-प्यारे पक्षियों की.



१.कुह कुह करती कोयल काली
उड उड जाती आम की डाली
मीठे-मीठे गीत सुनाए
सबके मन को भा जाए



२.चिडिया रानी बडी स्यानी
मुँह मे भर लाई दाना-पानी
फुर फुर कर उड जाती है
चीं चीं कर के गाती है




३.कांव कांव करता कौआ काला
इधर उधर घूमे मतवाला
जब भी देखे हाथ मे रोटी
हो जाए इसकी नियत खोटी
छीन के रोटी ये उड जाए
बैठ के छत पर मजे से खाए




४.देखो रंग बिरंगा मोर
जब छाएं बादल घनघोर
अपने सुन्दर पंख फैलाता
नाच-नाच के मन बहलाता




५ मुर्गा बोला कुक्कडूं कूं
दाना मुझको देदे तू
सुबह सवेरे आऊंगा
नींद से तुम्हें जगाऊंगा




६.उल्लू बैठा पेड की डाल
सुन लो भाई इसका हाल
दिन भर तो यह करे आराम
जग जाए होते ही शाम




७.रंग-बिरंगी तितली आई
आकर फूलों पर मंडराई
इधर-उधर बगिया मे घूमे
फूल फूल को जाकर चूमे


मकर सक्रांति तथा लोहड़ी की आप सब को हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं