जहाँ चाह वहीं राह
जहाँ चाह वहीं राह
जहाँ चाह है वहीं राह है
इसे न जाना भूल .
जो न करता प्रयत्न कभी भी
उसको मिलता शूल .
कांटे बिछे हर राह अनेक
हिम्मत कभी न हार .
जब पहुँचोगे तुम मंजिल पर
मिलें खुशी के हार .
अवसर कभी न खोना यूँ हीं
छोटा न कोई काम .
चढ़ते चढ़्ते चढ़ जाता नर
पर्वत पर हो धाम .
इक इक अणु जब वाष्पित होता
बनकर छाये मेघ .
इक इक बूंद से भरता घड़ा
मिलकर बाँटो नेह .
कण कण से ही बनता मधुरस
कण कण से संसार .
कण कण से ही बना हुआ है
अखिल विश्व अपार .
हिम्म्त कर बस चलना सीखो
मन में हो उत्साह .
हार जीत तो मन से होती
करो न कुछ परवाह .
तुम भी जग में चलना सीखो
पाओगे हर राह .
जग में जो भी फिर चाहोगे
पूरी होगी चाह .
कवि कुलवंत सिंह

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5 पाठकों का कहना है :
नेक कर्मों की ओर ले जाती कविता
कवि कुलवंत की मानसिक परिपक्वता को
बखूबी दर्शाती है और हमें इस ओर जाने के
लिए उत्साहित करती है।
prerna detee,राह dikhati सुन्दर कविता....
कण कण से ही बनता मधुरस
कण कण से संसार .
कण कण से ही बना हुआ है
अखिल विश्व अपार .
bahut achchha laga yah blog bhii aur apka ye baalgeet.bachchon ke liye yah ek achchha prayas hai.
प्रेरक कविता,,,,,,,,
हिम्म्त कर बस चलना सीखो
मन में हो उत्साह .
हार जीत तो मन से होती
करो न कुछ परवाह .
तुम भी जग में चलना सीखो
पाओगे हर राह .
जग में जो भी फिर चाहोगे
पूरी होगी चाह .
bahut achchi kavita
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