Saturday, March 29, 2008

काश कि मैं एक पंछी होता

आज बाल-उद्यान पर हम कवयित्री रेनू जैन की बाल रचना लेकर आये हैं। आशा है पसंद आयेगी।

'काश कि मैं एक पंछी होता '


काश कि मैं एक पंछी होता,
नील गगन में मैं उड़ जाता,
दोनों पंख फैला कर अपने,
आसमान को छू कर आता.

जब तुम छत पर आती दीदी,
अपने हाथ में लेकर रोटी,
फुर्र से आता, चूँ चूँ करता,
छीन के रोटी फिर मुड़ जाता.

चाहती तुम दोपहर को सोना,
शोर माचाकर तुम्हें जगाता,
झांकती जब खिड़की से तुम माँ,
चूँ चूँ कर के तुम्हें चिड़ाता.

आसमान में जब उड़ता तो,
चन्दा से भी मिलकर आता,
और तुम्हारे लिए मैं दादी,
चोंच में तारे भरकर लाता.

-रेनू जैन


Friday, March 28, 2008

आना बाना दाना

आना बाना दाना
चिडिया खाये खाना
पेट भरे जब उसका
मस्ती से गाये गाना ।

आना बाना दाना
सैर सपाटे जाना
शेर दिखे जो राह में
सरपट भागे आना ।

आना बाना दाना

टिफिन नही बनाना
टीचर करती गुस्सा
स्कूल नही अब जाना ।

आना बाना दाना
शोर नही मचाना
नींद टूटी दादा की
तो मार तुम ही खाना ।

आना बाना दाना
मौसम है सुहाना
खूब छाए हैं बादल
बारिस में नहाना ।

आना बाना दाना
मेहमां को है आना
मम्मी, पापा आफिस में
घर को हमें सजाना ।

आना बाना दाना
लड्डू खूब खाना
पापा ने पकड़ी चोरी
चले न कोई बहाना ।

आना बाना दाना
चावल है पुराना
भूख लगी है मम्मी
अब तो दे दो खाना ।

आना बाना दाना
सबको खेल खिलाना
करे जो कोई शैतानी
टंगड़ी मार गिराना ।

आना बाना दाना
गाड़ी में घुमाना
धूम मचाएं मिलकर
सीटी तुम बजाना ।

आना बाना दाना
बर्थ-डे है मनाना
सबको है बुलाया
केक बड़ा सा लाना ।

आना बाना दाना
छोड़ो अब सताना
मिलकर झूमें नाचें
छेड़ो कोई तराना ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, March 27, 2008

बदला मेरा हिस्साब

खत्म हो गई आखिरी परीक्षा
आने वाली थी सातवीं कक्षा
नतीज़ा पता करने का दिन आया
अध्यापक ने माँ को बुलाया
जैसे ही माँ स्कूल में आई
अध्यापक ने एक अच्छी ख़बर बताई
वो बोली आपका बेटा हुआ हैं पास
सुनिए एक और ख़बर जो हैं बहुत खास
इस बालक ने पार कर लिया हैं
छठीं कक्षा का माध्यम
और अच्छे अंक से यह आया हैं
हर क्षेत्र में प्रथम
जैसे ही अध्यापक ने यह बतलाया
वैसे ही खुशी के मारे मैं चिल्लाया
घर आते ही मैंने फ़ोन उठाया
बुआ, नानी, मासी का नम्बर लगाया
शाम ही , सब तोहफे ले कर
घर पर आये
पर हाय रे, सब तोहफे मैंने
एक से हैं पाए
मैं सोच रहा था, मिलेंगे खिल्लोँ
सब में थीं बस किताब ही किताब
और पढ़-पढ़ के बदला मेरा हिस्साब

बाल कवि- राघव शर्मा


Wednesday, March 26, 2008

अतिथि बाल साहित्यकार- श्री राजकुमार जैन 'राजन'

राजकुमार जैन 'राजन' सुपरिचित बाल साहित्यकार हैं। आप कविता, कहानी एवं नाटक विधाओं के सशक्त रचनाकार है। बाल साहित्य की प्रमुख विधाओं में आपकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। प्रस्तुत है श्री राजन की एक बाल कविता-

हरे पेड़ की छाँव
प्यारी और दुलारी लगती, हरे पेड़ की छाँव।
इसको छोड़ कहीं जाने में, रूक जाते हैं पाँव।

कोयल बैठी, चिडिया बैठी, हमें सुनाती गाना।
जाने वाले राहगीर फिर, लौट यहीं पर आना।

इसी छाँव में खेल खेलते, खुश होते हैं बच्चे।
कभी न चाहो बुरा किसी का, सदा रहो तुम सच्चे।

आओ मिलकर नाचें-गायें, जैसे अपना गाँव।
माँ की ममता सी लगती है, हरे पेड़ की छाँव।।


Tuesday, March 25, 2008

दुनिया अजब गजब है ..

दुनिया अजब गजब है ..


क्या आप जानते हैं कि सिनेमाघर में फिल्म शुक्रवार को ही आखिर क्यों बदलती है ?

हम बताते हैं आपको ..शुरू में फिल्म मूक होती थी !आर्देशर ईरानी ने सवाक यानी बोलने वाली फिल्मों की शुरुआत की आलमआरा फ़िल्म बना कर... शायद यह चलती बोलती तस्वीर की दुनिया में यह बहुत बड़ी बात थी यह घटना शुक्रवार को सम्पन्न हुई थी ..अतः सवाक फिल्मों की दिशा में मिली सफलता की याद में आज भी फिल्म शुक्रवार को ही सिनेमाघरों में बदलती है !


अब बताये कि नमस्कार कहते समय अक्सर दोनों हाथ क्यों जोड़े जाते हैं ???

वह इसलिए की देखने वाले को महसूस हो कि हमारे प्रति वह दिल में सम्मान व्यक्त कर रहा है और यह महसूस करने में अच्छा भी लगता है :) अगर सिर्फ़ बोल के नमस्ते कर दी जाए तो लगता है कि यह सिर्फ़ एक दिखावा हो रहा है ..यही हमारी संस्कृति भी है और यही हमे अपने बुजर्गों से मिले अच्छे संस्कार भी :)

क्या आप जानते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति जान ऍफ़ .कनेडी व्हाइट हॉउस में जिस डोलती कुर्सी पर बैठते थे वह एक नीलामी में ४,४२.५०० डालर की भारी कीमत पर बिकी थी .


आई बैंक एसोशिएशन आफ इंडिया के अनुसार भारत में दान की जाने वाली ९० प्रतिशत आँखे गुजराती और जैन धर्म के लोग दान करते हैं ..

आज इतना ही बाकी अगली बार .सबको नमस्कार हाथ जोड़ के :)


Monday, March 24, 2008

पानी है अनमोल

आज मैं लेकर आई कहानी
इक मेंढक की है नादानी
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एक बाग में था तालाब
सुन्दर सा नहीं कोई जवाब

तरह-तरह के खिले थे फूल
छोटे से तालाब के कूल

वहाँ पे कुछ मेंढक रहते थे
जल में जलक्रीड़ा करते थे

कभी अन्दर कभी बाहर जाते
सब तालाब में खूब नहाते

वहाँ पे पूरी मस्ती करते
नहीं वो कभी किसी से डरते

सारे ही वहाँ खुश रहते
उसे स्वर्ग सा सुन्दर कहते

मेंढक इक उनमें शैतान
बुद्धि में सबसे नादान

करता वो ऐसी शैतानी
जिससे गन्दा हो जाए पानी

पानी में कचरा वो फेंकता
और फिर सबका तमाशा देखता

पत्तों में जाकर छुप जाता
और उन सबको बड़ा सताता

सारे मेंढक दुखी थे उससे
क्या करे समझे वो जिससे

प्यार से उसको सब समझाते
और पानी का मूल्य बताते

न बर्बाद करो तुम पानी
पानी से मिलती जिंदगानी

जो तुम इसको गंदा करोगे
तो फिर जाकर कहाँ रहोगे

जो गंदा पानी पियोगे
तो बीमारी से मरोगे

साफ स्वच्छ होगा जो यह जल
तभी होगा अपना मन निर्मल

पर मेंढक ना समझे बात
सबने मिल सोचा इक रात

नया कोई ढूँढ़ेगे ठिकाना
इस मेंढक को नहीं बताना

चुपके से यहाँ से निकलेंगे
नई जगह पे जाके रहेंगे

निकले छुप-छुपा के सारे
अब वो मेंढक मन में विचारे

अब तो मैं हो गया आज़ाद
करूँगा मैं पानी बर्बाद

नहीं कोई अब उसको रोकेगा
और वो मर्ज़ी से रहेगा

किया तालाब का गंदा पानी
खुश था करके वो शैतानी

पीता था वही गंदा पानी
नहीं थी बात किसी की मानी

इक दिन वो पड़ गया बीमार
चलने फिरने से लाचार

नहीं था वहाँ पे कोई स्वच्छ जल
जिससे हो जाता वह निर्मल

अब मेंढक को समझ में आया
सोच-सोच के बड़ा पछताया

जो मैं सबकी बात समझता
और पानी न गंदा करता

तो मैं यूँ बीमार न होता
पड़ा अकेला कभी न रोता

पर न अब कुछ हो सकता था
वो तो बस अब रो सकता था

अपने किए पे पछता रहा था
भूल पे आँसू बहा रहा था

पर ना कोई था उसके पास
बैठ गया वो हो के उदास

नहीं करूँगा अब शैतानी
और न करूँगा गंदा पानी

पानी तो अमृत का घोल
हर बूँद इसकी अनमोल
....................................
बच्चों तुमको समझ में आई
कभी न करना कोई बुराई

कभी न गन्दा करना पानी
यह तो देता है जिंदगानी

अपील-पानी अनमोल है , इसकी हर बूँद कीमती है |पानी की बचत हमारा धर्म है |
पानी जीवन है , इसकी स्वच्छ्ता और सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है|

द्वारा- सीमा सचदेव


Sunday, March 23, 2008

मेंढक की मस्ती



रिम-झिम, रिम-झिम पानी बरसा,


मेंढक नहीं पानी को तरसा,


टर्र, टर्र, टर्र, टर्र, शोर मचाये,


उछले-कूदे नाच दिखाये,



ठंड बड़ी मुश्किल से काटी,


गर्मी नहीं है साथ निभाती,


पानी की बौछार जो आई,


खिल गया मन, पा मन भाता साथी ।





-डा0अनिल चड्डा


Saturday, March 22, 2008

रंग रंगीली होली












रंग रंगीली आई होली
नन्ही गुड़िया माँ से बोली
माँ मुझको पिचकारी ले दो
इक छोटी सी लारी ले दो
रंग-बिरंगे रंग भी ले दो
उन रंगों में पानी भर दो
मैं भी सबको रग डालूँगी
रंगों के संग मज़े करूँगी
मैं तो लारी में बैठूँगी
अन्दर से गुलाल फेंकूँगी
माँ ने गुड़िया को समझाया
और प्यार से यह बतलाया
तुम दूसरो पे रंग फेंकोगी
और अपने ही लिए डरोगी
रँग नहीं मिलते है अच्छे
हुए बीमार जो इससे बच्चे
तो क्या तुमको अच्छा लगेगा
जो तुम सँग कोई न खेलेगा
जाओ तुम बगिया मे जाओ
रंग- बिरंगे फूल ले आओ
बनाएँगे हम फूलों के रन्ग
फिर खेलना तुम सबके संग
रंगों पे खरचोगी पैसे
जोड़े तुमने जैसे तैसे
उसका कोई उपयोग न होगा
उलटे यह नुकसान ही होगा
चलो अनाथालय में जाएँ
भूखे बच्चों को खिलाएँ
आओ उन संग खेले होली
वो भी तेरे है हमजोली
जो उन संग खुशियाँ बाँटोगी
कितना बड़ा उपकार करोगी
भूखा पेट भरोगी उनका
दुनिया में नहीं कोई जिनका
वो भी प्यारे-प्यारे बच्चे
नन्हे से है दिल के सच्चे
अब गुड़िया को समझ में आई
उसने भी तरकीब लगाई
बुलाएगी सारी सखी सहेली
नहीं जाएगी वो अकेली
उसने सब सखियों को बुलाया
और उन्हें भी यह समझाया
सबने मिलके रंग बनाया
बच्चों सँग त्योहार मनाया
भूखों को खाना भी खिलाया
उनका पैसा काम में आया
सबने मिलकर खेली होली
और सारे बन गए हमजोली

********************************

हिन्द-युग्म परिवार, लेखकों व पाठकों सभी को होली की हार्दिक बधाई.....सीमा सचदेव


Friday, March 21, 2008

विश्वास कीजिए, ये सच है













उपर्युक्त तस्वीरों को देखकर आश्चर्य होता है न! ...ये तस्वीरें एस.बी.ओ. ए. पब्लिक स्कूल, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की छात्रा पूजा बंग द्वारा बनाई गईं रंगोलियों की हैं। ..असाधारण प्रतिभा की धनी पूजा बंग एक चित्रकार भी हैं जो अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हैं। ...रंगोली प्रतियोगिता में इस बार उन्होंने पूरे मराठवाड़ा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया ..इनकी प्रतिभा को सबके सामने लाने का श्रेय जाता है हमारी सक्रीय सदस्या सुनीता यादव को।


Thursday, March 20, 2008

आ गयी होली प्यारी प्यारी



आ गयी होली प्यारी प्यारी
सबने ली होगी पिचकारी
लेकिन कुछ बातों को बच्चो
ध्यान से सुनना आज हमारी



तेज रंग कैमिकल वाले
पिचकारी में कोई ना डाले
इनसे होता है नुकसान
जले त्वचा और पड़े निशान



और अगर भरकर गुब्बारे
हमने एक-दूजे पर मारे
चोट लगा सकते हैं ये सब
इस्तेमाल ना इनका हो अब



टेसू पलाश और फूलों के रंग
जमकर खेलो होली संग-संग
प्रेम से सबको गले लगाना
मिठाई बाँटकर पर्व मनाना



क्या छोटा क्या बड़ा सभी का
प्रेम भाव से करना टीका
ऊँच नीच का भेद मिटाना
ही असली त्योहार मनाना



शुभ-होली...


Wednesday, March 19, 2008

चिंटू-मिंटू

आओ बच्चो, आज हम आपको सुनाएँगे दो भाईयो की कहानी जो बच्चों के साथ लड़ते रहते थे और किसी के दोस्त नहीं बनते थे।


चिंटू-मिंटू

चिंटू-मिंटू जुड़वाँ भाई
एक ही सूरत दोनों ने पाई

करते बच्चों संग लड़ाई
जिससे उनकी माँ तंग आई

पापा उनको बहुत रोकते
पर दोनों ही अकल के मोटे

टीचर भी उनको समझाती
पर दोनों को समझ न आती

किसी न किसी को रोज़ पीटते
और कक्षा में हल्ला करते

सारे उनसे नफ़रत करते
उनकी मार से सारे डरते

बीमार पड़ा था इक दिन चिंटू
गया स्कूल अकेला मिंटू

बच्चों ने तरकीब लगाई
और मिंटू को सबक सिखाई

कोई भी उससे नहीं बोलेगा
बैठेगा वो आज अकेला

न कोई उस संग लंच करेगा
न उसके संग कोई खेलेगा

मिंटू ने थोड़ा समय बिताया
और फिर जब बच्चों को बुलाया

सभी ने उससे मुँह था फेरा
देखता रह गया वो बेचारा

किसी तरह से दिन बिताया
और फिर जब घर वापिस आया

बैठ गया था घर के कोने
लगा था ज़ोर-ज़ोर से रोने

चिंटू बोला क्या हुआ भाई?
किसी ने तुझसे की लड़ाई?

जल्दी से तू कह दे मुझसे
बदला लूँगा अभी मैं उससे

मिंटू बोला न मेरे भाई
बंद करो अब सारी लड़ाई

अब हम नहीं लड़ेंगे किसी से
मिलजुल कर ही रहेंगे सबसे

मिंटू ने सारी बात बताई
चिंटू को भी समझ में आई

दोनों बन गये अच्छे बच्चे
सारे बन गये दोस्त सच्चे
.........................................................................................
बच्चो तुम भी मिलकर रहना
कभी न किसी से झगड़ा करना

********************

- सीमा सचदेव


Tuesday, March 18, 2008

क्या आप जानते हैं..दीदी की पाती

शुभ प्रभात ..

दीदी की पाती लाती है आप सब के ढेर सारी नई जानकारी .. जिसमें कभी होती हैं रोचक बातें ,कभी कोई संदेश देती कहानी और कभी कोई सुंदर सी बाल कविता ...और इस सब जानकारी को लिखने में ...आप तक पहुंचाने में मेरी कोशिश यही रहती है कि आप सब के साथ मैं वह सब बाँट सकूं जो मैं पूरे हफ्ते खोज करके आपके लिए लाती हूँ ताकि हर बार कोई नई जानकारी इस पाती में जुड़ सके ...यदि आप सब भी कोई नई जानकारी या सुझाव देना चाहे तो आप सब का हार्दिक स्वागत है ..इस बार की पाती में हैं कुछ और नई रोचक बातें ...

क्या आप जानते हैं ...


1.मनु प्रकाश जिंदल जो जालंधर के रहने वाले हैं ....उनको कई प्रकार के समाचार पत्र इकटठा करने का शौक है उन्होंने इस का एक संग्रहालय बना रखा है जिसमें 3000 से भी अधिक 40 भाषा में समाचार पत्र हैं वह इन्हे एक विशेष प्रकार की पेटी में सुरक्षित रखते हैं इस में राष्ट्रीय .अन्तराष्ट्रीय ,प्रांतीय सभी प्रकार के समाचार पत्र हैं !!


2.न्यूयार्क टाइम्स संसार का सबसे बड़ा अख़बार है यह अफ्रीका में प्रकाशित होता है
इसका इतवार को आने वाले पेपर में 780 पेज होते हैं और इसका वज़न 3 किलो का होता है यह
अख़बार सारे संसार की समाचार प्रकाशित करता है !!


3.लंदन में पुलिस वालो को बाबबीज कहते हैं जबकि अमरीका पुलिस को
काप्स कहते हैं ....


4 छिपकली कभी पानी नही पीती यह जो कीड़े मकोड़े खाती है उसी से
अपनी प्यास बुझाती है !!

5.पेरू में रेलवे का सबसे उँचा रेलवे स्टेशन है यह अपनी मुख्य लाइन का सबसे उँचा स्थान है इसकी समुद्रतल से उँचाई 15.868 है!!

.6 पहला शब्दकोष सबसे पहले लेटिन भाषा में १२२५ में बना था शब्दकोश वह होता है जिसमें
शब्दों के अर्थ के साथ शब्द बोलने के उच्चारण पर भी बताया जाता है इसका मौलिक शब्द
डिक्शनरी है जिसका अर्थ होता है शब्दों का संग्रह वर्ष १५५२ में सबसे पहले अंग्रेजी डिक्शनरी प्रकाशित हुई थी!!
--

कैसी लगी आप को यह जानकारी ..अपने विचार और कुछ नए सुझाव या कोई और ऐसी रोचक जानकारी आपके पास भी हो तो जरुर हमारे साथ बांटे ..अपना ध्यान रखे

आपकी दीदी

रंजू


Monday, March 17, 2008

परियों की शहजादी

मैं शहज़ादी परियों की हूँ
आसमान में मेरा घर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर
मैं कलियों सी सुन्दर कोमल
चाहूँ जहाँ पे जाती हूँ
हवा के संग में बातें करती
नीलगगन में उड़ती हूँ
हरी भरी धरती को देखूँ
आसमान में बादल को
देखूँ नदियाँ झरने पर्वत
और पेड़ों की हलचल को
कुदरत का संगीत मैं सुनती
देखूँ इसकी सुन्दरता
फूलों से खुशबू लेती हूँ
और भँवरों से चंचलता
नन्हे बच्चे मुझको भाते
और भाता है भोलापन
न दुनियादारी न झँझट
कितना प्यारा यह बचपन
मन में मैल नहीं बच्चों के
न ही कुछ खोने का डर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर

-सीमा सचदेव, बंगलूरु


Sunday, March 16, 2008

काली मक्खी


काली मक्खी, काली मक्खी,

तूने क्यों मेरी टाफी चखी,

तेरे पर जो काटूँ रानी,

याद आयेगी तुझको नानी,

भूल जायेगी घर का रस्ता,

नहीं पड़ेगा सौदा सस्ता,

इसलिये मेरी बात ये मानो,

दूजे की चीज पर नज़र न डालो।


- डॉ॰ अनिल चड्डा


Saturday, March 15, 2008

बाल-उद्यान की गतिविधियों से प्रिंट पत्रिकाएँ हो रही हैं परिचित

बाल-उद्यान ने किल्लोल किया


शाहपुरा, जयपुर (राज) से प्रकाशित होने वाली बच्चों की त्रैमासिक पत्रिका के मार्च-मई अंक में बाल-उद्यान की गतिविधियों को स्थान मिला है। बहुत खुशी की बात है कि इस पत्रिका का पहली सामग्री भी यही है। संपादकीय के बाद 'बाल-समाचार' शीर्षक से पृष्ठ संख्या ५ पर यह प्रकाशित हुआ है। इस पत्रिका की संपादिका हैं संगीता रॉय। स्वतंत्र पत्रकार रीतेश पाठक के सहयोग से बाल-उद्यान यहाँ तक पहुँच पाया है।

आप भी पढ़ें-


Friday, March 14, 2008

तितली परी

परी मै नन्ही उड़ती हूँ
बादल संग मै तिरती हूँ
पल में यहाँ पल में वहाँ
हवा से बाते करती हूँ ।

दूर सितारों में घर मेरा
परियों का वह देश है मेरा
चांद तारों से पिरो कर
बनता है परिधान मेरा ।

'तितली' परी है मेरा नाम
'रानी' परी ने सौंपा काम
जग में जा कर खूशी बिखेरूँ
हर बच्चे को दूँ मुस्कान ।

बच्चे मुझको भाते हैं
मुझसे हिलमिल जाते हैं
मिल बैठ कर हम सब फिर
हंसते खिलखिलाते हैं ।

जिसको गम है कोई सताता
वह फिर मेरे पास आता
मिठाई, खिलौने भर कर देती
हंसता हंसता वापस जाता ।

दूर गगन में ले कर जाती
आसमाँ की सैर कराती
किसी भी बच्चे की आँखों में
आँसू को मै देख न पाती ।

बच्चों आओ मेरे पास
जादुई छड़ी है मेरी खास
सबकी इच्छा पूरी करती
ख्वाहिश कहो अपनी बिंदास ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, March 13, 2008

शेर और कुत्ता

बच्चो, आज तुम्हारी सीमा सचदेव आंटी कविता के रूप में शेर और कुत्ते की कहानी सुना रही हैं।

आओ बच्चो सुनो कहानी
न बादल न इसमें पानी

इक कुत्ता जंगल में रहता
और स्वयं को राजा कहता

मैं सबकी रक्षा करता हूँ
और न किसी से मैं डरता हूँ

बिन मेरे जंगल है अधूरा
असुरक्षित पूरा का पूरा

मुझ पर पूरा बोझ पड़ा है
मेरे कारण हर कोई खड़ा है

मै न रहूँ , न रहेगा जंगल
मुझसे ही जंगल में मंगल

सारे उसकी बातें सुनते
पर सुन कर भी चुप ही रहते

समझे स्वयं को सबसे स्याना
था अन्धों में राजा काना
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पर यह अहम भी कब तक रहता
कब तक कोई यह बातें सुनता

इक दिन टूट गया अहँकार
जंगल में आ गई सरकार

बना शेर जंगल का राजा
खाता-पीता मोटा-ताजा

शेर ने कुत्ते को बुलवाया
और प्यार से यह समझाया

छोड़ दो तुम झूठा अहँकार
और आ जाओ मेरे द्वार

बिन तेरे नहीं जंगल सूना
यह तो फलेगा फिर भी दूना

पर कुत्ते को समझ न आई
उसने अपनी पूँछ हिलाई
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मैं यहाँ पहले से ही रहता
हर कोई मुझको राजा कहता

कौन हो तुम यहाँ नए नवेले
अच्छा यही, वापिस राह ले ले
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ले लिया उसने शेर से पंगा
मच गया अब जंगल में दंगा

भागे यहाँ-वहाँ बौखलाया
खुद को भी कुछ समझ न आया

जो अन्धो में राजा काना
समझता था बस खुद को स्याना

अब तो वही बना नादान
शेर के हाथ में उसकी जान
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छुप कर गया शेर के पास
बोला मैं जानवर हूँ खास

न बदनाम करो अब मुझको
राजा मैं मानूँगा तुझको

बख़्श दो मुझको मेरी जान
नहीं करूँगा मैं अभिमान
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शेर ने कुत्ते को माफ कर दिया
और अपना मन साफ कर दिया

तोड़ा कुत्ते का अभिमान
और बख़्श दी उसको जान

-सीमा सचदेव, बंगलूरु (कर्नाटक


Tuesday, March 11, 2008

दीदी की पाती ...

दीदी की पाती ...[हिम्मत कभी मत हारो ]

नमस्ते, कहिये क्या चल रहा है ..कैसी चल रही है आप सब की परीक्षा ..? खूब दिल लगा कर परीक्षा दे रहे हैं न आप सब ? खूब मेहनत करना और कभी हिम्मत न हारना ..जो जीवन में हिम्मत हार देते हैं वे जीवन को हार देते हैं ..चलो इस बारे में एक किस्सा सुनाती हूँ आपको आप सब ने महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन का नाम तो सुना होगा ..एक बार उनसे किसी बच्चे ने पूछा कि अंकल ! मुझे कोई ऐसा मन्त्र बताओ जिस से मैं जीवन में शत प्रतिशत सफलता हासिल कर सकूं !"

आइन्स्टीन ने मुस्करा कर कहा --"कभी हिम्मत न हारो "

बालक ने पूछा कैसे अंकल ?"

तब उन्होंने बताया कि जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो स्कूल में सभी साथी मुझे बहुत तंग करते और बुद्धू कह कर चिढ़ाते गणित के अध्यापक मेरा इतना अपमान करते कि मैं शर्म से वही सिर झुका देता ! वह हमेशा मुझे ताना दिया करते कि तुम सात जन्म में भी गणित नही सीख पाओगे ..इन सब बातों से चिढ कर मैंने निश्चय किया कि मैं पूरी मेहनत से सब काम सीखूँगा, किसी ने अपमानित करने से हिम्मत नही हारूँगा .इसलिए ही मैं कुछ कर सका कुछ जीवन में बन सका ..सोचो यदि मैं हिम्मत हार देता तो मेरा क्या होता ...!""

सो बच्चो ! जीवन में किसी भी मुश्किल का सामना निडर हो कर करो और हमेशा सच का साथ दो .देखो कैसे सब काम आसान हो जाते हैं ... मेरी तरफ़ से आपको परीक्षा के लिए शुभ कामनाये . फ़िर मिलूंगी आपसे अगले मंगलवार कुछ और मजेदार बातें ले कर ..

आपकी दीदी

रंजू


Monday, March 10, 2008

चित्रकार ,ओ चित्रकार ............

चित्रकार, ओ चित्रकार !
तुम आज वो अनुपम चित्र बना दो ।
बाल विहग मेरा बालापन ,चित्र बना मुझको लौटा दो।
जीवन यौवन यमदूतो ने,
मुझसे हाय !बालधन छीना ..
तुम चित्रितकर बालरूपमय,मुझको बिसरा धन लौटा दो।

निधि मेरी अमूल्य वही थी,
जिसका मूल्य अभी जाना है।
बीत गया तृणकाल उसे ही,
हीरक के सम अब जाना है।
खुशियों का भंडार ,निधि वह मुझको तुम फिर आज दिला दो ।


सरल, सहज उस बाल जगत की,
स्मृतियाँ हैं रंगरंगीली ।
उन रंगों से रंगी हुई हैं,
आँखें मेरी नीली-नीली ।

नीलजटित मेरे नयनों को ,फिर वह इंद्रधनुष दिखला दो।

चित्रकार ,ओ चित्रकार ! तुम आज ये अनुपम चित्र बना दो ।



अलंकृति शर्मा
आठवीं [अ]
केन्द्रीय विद्यालय बचेली


Friday, March 7, 2008

सम्मेलन

बच्चों ! जो कविता मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ , वह एक कल्पना-मात्र है। परंतु कोरी कल्पना मानकर इसे निरस्त न कर देना।

एक बार की कहूँ मैं बात,
मुश्किल से मुझे हुई है ज्ञात।
दो धर्मों के हैं जो सुर,
रहते परस्पर कोसों दूर।

सुरसिन्धु में करते स्नान,
सुरेश को आई बात एक ध्यान-
राम-रहीम का हो सम्मेलन,
सेवय्यों का हो तब सेवन,
वे बाबुल और हम हों वर,
उनके आँगन अपने घर ।
नारद मुनि तब दिए दिखाई,
पर वे तो हैं ब्रह्मचारी, भाई ।
इस बात का करके ध्यान,
इंद्र का लगा रहा स्नान ।
महर्षि "टेलीपैथी" से जान,
छेड़े अपनी सुर में तान-
उत्तम राजन आपकी बात,
पर सही नहीं उनके जज्बात,
उनके यहाँ भेजे हम दूत,
मिले सबूत तब हीं साबूत।
इंद्र को बातें समझ में आई,
नारद को यह बात बताई-
आप हीं बने संदेश वाहक,
अरे! यूँ परेशान न हों नाहक।

नारद का बहिश्त में प्रवेश,
लगा उन्हें अपना हीं देश।
प्रधानमंत्री थे मुहम्मद हज़रत,
किया महर्षि का उन्होंने स्वागत।
महर्षि को हुआ तब अचरज,
उनका विचार गया करने हज़।
अल्लाह उठकर लगाए गले,
दौड़ आए उनके दो चेले ।
एक चेला था बहुत हीं कट्टर,
दूजा था उससे कुछ हटकर।
पहले की गई भौंहें तन,
अल्लाह का अशुद्ध हुआ बदन।
दूसरा हुआ बेहद प्रसन्न,
कैसे गई आज बात बन !-
पूछा आने का प्रयोजन,
महर्षि का हर्षित हुआ मन ।
राम-रहीम का हो सम्मेलन,
मिट जाएँ सारे हीं अनबन ।
सम्मेलन के लिए हो तैयार,
अल्लाह ने खोला आने का द्वार।
सम्मेलन स्थल हुआ तब निश्चित-
दरगाह -ए- मोइनुद्दीन चिश्ती।

निश्चित दिवस का हुआ आगमन,
सभी सुर खुद में हीं मगन।
राम-रहीम के लग गए आसन,
आ गए चिश्ती बगैर-बदन ,
मगर दिए वो सब को दिखाई,
उनके लिए भी कुर्सी आई ,
तुलसी, कबीर, सूर, काली भी,
दुर्गा, पार्वती ,लक्ष्मी , काली भी।
इन्द्र को मिला कब्र का भार,
सुरों के लिए भारी सब्र का पहाड़।
राम-रहीम का हुआ आगमन,
तब कहीं शुरू हुआ सम्मेलन।
बातों की लग गई झड़ी,
नारद दिखाते झंडी-हरी।
पर कट्टर चेला दिखा नाखुश,
उसकी मंशा उड़ी बनकर कुश।
सभी विषयों पर हुई बहस,
औरों को बोलने का न साहस।
कब्र में परेशान हुए नाकाधीश,
रहीम न पड़ें राम पर बीस।
राम तभी एक बात उठाए,
त्योहारों में भागीदार हो जाएँ,
रहीम हिलाए हाँ में गरदन,
त्योहारों में साथ हम हरदम।
अब रहीम की आई बारी,
रखें वे बात दिमाग की सारी,
दु:ख-सुख में हम हों साथ,
राम ने बढाया हाँ कह हाथ।
कहते हैं तभी हुई अनहोनी ,
मैत्री की सूरत हुई जब रोनी ,
कट्टरता दिखा गई रंग,
उसने कर दी शांति भंग,
अन्य ताकतों के होकर वश में,
रहीम ने बदली प्रेम की कसमें-
गर हित हमारे टकराएँ,
हम हीं तब आगे हो जाएँ।
इस शर्त्त को मानें राम,
तब कहीं, बहस हुई आम।
हिन्दू-सुरों ने छेड़ी बात,
हमारे मुद्दे रहें हमारे साथ।
राम ने तब भविष्य को जान,
छेड़ी विष भरी मधुर तान-
यदि हुआ मेरे मंदिर को खतरा,
भूलेंगे सारी नीति , सब पतरा,
रहीम हुए इस हेतु तैयार,
हटा तब सम्मेलन का भार।
अपनी कब्र में गए तब चिश्ती,
निकले बाहर धारक-ए-हस्ती,
पर उनका उद्देश्य न हुआ सफल,
टूटा विवाह का स्वप्न-महल ।

राम का चिंतन दे रहा दिखाई,
चहुँओर मंदिर-मस्जिद की लड़ाई।
दो-दो शर्त्त गए हैं टकड़ा,
किसकी शर्त्त बने बलि का बकड़ा।
शर्त्तों पर हीं टिका भाईचारा,
वरना होता दो यह विश्व सारा!!!!

-विश्व दीपक ’तन्हा’
४ मार्च १९९९


हम हैं बच्चे

हम हैं बच्चे दिल के सच्चे
समझ न हमको कच्चे कच्चे
जब अपनी पर हम आ जाते
बड़े बड़ों के छूटते छक्के ।

सात समंदर पार हो जाना
दूर गगन से तारे लाना
सब कुछ अपने बस में भैया
मेहनत से क्यूँ जी चुराना ।

दोस्त है अपनी लाल परी
हाथ में उसके छड़ी सुनहरी
जब भी मांगो, जो भी मांगो
सबकी इच्छा करती पूरी ।

सूरज अपने दादा लगते
दुनिया को रोशन कर देते
संग हमारे खेल खेल कर
जब वह छिपते हम घर आते ।

चंदा अपने मामा लगते
आँख मिचौली खूब खेलते
घटना, बढ़ना, गायब होना
गजब खेल हमको दंग करते ।

हम हैं बच्चे, दिल के सच्चे
सारी दुनिया से हम अच्छे
जब अपनी करतूत दिखाएं
बड़े बड़े खा जाते गच्चे ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, March 6, 2008

हर हर महादेव...




"गौरीपति कामारि शिव भूतनाथ गिरिजेश
शंकर भव कैलाशपति महादेव रुद्रेश"
~-:0:-~

जय जय शम्भु जय महाज्ञानी, जय शंकर त्रिपुरारी
हम बालक अज्ञानी....
हम बालक अज्ञानी शम्भु, विपदा हरो हमारी
विपदा हरो हमारी भोले, रक्षा करो हमारी
जय शम्भु.....................

नहीं नीर है नहीं क्षीर है,
नहीं नीर है नहीं क्षीर है, नहीं बेल-पत्र है
आँखों में खारा पानी है और उर में हर हर है
हम सक्षम नहीं भोग लगायें..
हम सक्षम नहीं भोग लगायें, समझो प्रभु लाचारी
जय........................

नहीं चाहिये गंगा जी सा,
नहीं चाहिये गंगा जी सा, केशों में उलझाओ
नहीं चाहिये हमें मयंक सम मस्तक आप सजाओ
अपने चरणों में गिरिवासी..
अपने चरणों में गिरिवासी, रखलो जगह हमारी
जय........................

आप ही कर्ता आप ही हर्ता,
आप ही कर्ता आप ही हर्ता,आप ही जग पालक हैं
कृपादृष्टि बनाये रखना, हम पर हम बालक हैं
नहीं जानते विधि पूजा की..
नहीं जानते विधि पूजा की, हम नादान पुजारी
जय........................

भक्तों के दुःख दूर किये हैं,
भक्तों के दुःख दूर किये हैं, तरह तरह से आकर
बने केसरी भक्तों के हित, लंका रखी जलाकर
तारकासुर को मारा भोले..
तारकासुर को मारा भोले, हे भव भय दुःख हारी
जय........................

दूर करो त्रिशूल घुमाकर,
दूर करो त्रिशूल घुमाकर, शूल सभी जीवन के
हे नीलकण्ठ विष पी लो फिर से मानव अंतर्मन के
हे महादेव देवादिदेव हे..
हे महादेव देवादिदेव हे, अंग भभूति धारी
जय........................


Tuesday, March 4, 2008

फूलों का उत्सव

क्या आप जानते हैं कि जापानी फूलों के बहुत शौकीन होते हैं !कमल .चेरी और गुलदाउदी आदि के फूल जापानी लोगों को बहुत प्रिय होते हैं ! जापान में कदम कदम पर इन फूलों के बगीचे मिलेंगे !फूलों के मौसम में जापानी इनके कई उत्सव मनाते हैं ,जो कमलोत्सव ,चेरी -उत्सव और गुल दाउदी उत्सव आदिनामों से प्रसिद्ध है ! फूलों में सुगंध तो इतनी नही होती परन्तु इनके रंग बहुत आकर्षक होते हैं !गर्मियों में जब चेरी पर फूल आते हैं तो उनकी शोभा देखने सारा जापान उमड़ पड़ता है ! जापानी लोग अपने पूरे परिवार के साथ बगीचों में जाते हैं और घंटो फूलों के साथ बिताते हैं वह फूलों पर कविता लिखते हैं और उन कविताओं को फूलों पर लटका कर घर लौट आते हैं ! पूरी बहार में खिले हुए फूलों की शोभा देखने के लिए निर्धन से निर्धन जापानी भी कई सौ मील की यात्रा खुशी खुशी कर लेता है! कमल के मौसम में स्कूल के अध्यापक अपने विद्यार्थी को सूर्य निकलने से पहले कमल के तालाब पर ले जा कर उन्हें समझाते हैं कि कमल कैसे खिलते हैं ..हमारे भारत में भी वसंत के दिन शुरू होते ही राष्ट्रपति भवन में मुग़ल गार्डन सब आम लोगो के लिए खोल दिया जाता है ताकि लोग सुंदर फूलों को खिलता देख सके ..आप सब ने अभी तक नही देखा है तो जरुर देख के आए !!


Monday, March 3, 2008

बालगीत: कोई परी कहानी

बेटा तुम्हें सुनाऊं कैसे कोई परी कहानी ?
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।

घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली।
मंहगाई से डरी पड़ी है, डलिया सब्ज़ी वाली।

भूखे पेट भजन न होता, बात है बड़ी पुरानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।

बहन तेरी बीमार पड़ी है आए उसे बुखार।
बापू श्री के सिर में दर्द है बीत गये दिन चार।

तुझको भी तो लगी हुई है खांसी आनी–जानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।

फीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
एक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।

बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।

ज़ाकिर अली ‘रजनीश’


लक्ष्य

लक्ष्य लिए, मन मे संजोए,
बढ रहे हैं मार्ग पर ।
ओ विधाता साथ देना,
चल रहें हैं मार्ग पर ।।
है अलक्षित-सी ,धुमिल-सी ,
एक छवि इस लक्ष्य की।
पर है अंजानी डगर यह ,
है नई-सी राह की ।
लौ दीए की झिलमिलाती ,
साथ देना मार्ग पर।
कल्पनाएँ हैं बहुत-सी ,
स्वप्न भी अनगिनत-से।
है कटु यथार्थ लेकिन,
शीश ये नत विनत है ।
कर्म हम करते निरंतर,
पर अशंकित भाग्य पर ।
ओ विधाता साथ देना,
चल रहें हैं मार्ग पर ।
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अलंकृति शर्मा
आठवीं आठवीं-अ
केन्द्रीय विद्यालय बचेली,(बस्तर)


Sunday, March 2, 2008

चाँद पे होता घर जो मेरा

बच्चो,

आप सभी तो सीमा सचदेव से परिचित हो ही चुके हैं, आज हम उन्हीं की एक कविता लेकर आये हैं। ज़रूर बताइएगा कि कैसी लगी?

चाँद पे होता घर जो मेरा



चाँद पे होता घर जो मेरा
रोज़ लगाती मैं दुनिया का फेरा
चंदा मामा के संग हँसती
आसमान में ख़ूब मचलती

ऊपर से धरती को देखती
तारों के संग रोज़ खेलती
देखती नभ में पक्षी उड़ते
सुंदर घन अंबर में उमड़ते

बादल से मैं पानी पीती
तारों के संग भोजन करती
टिमटिमाटे सुंदर तारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे

कभी-कभी धरती पर आती
मीठे-मीठे फल ले जाती
चंदा मामा को भी खिलाती
अपने ऊपर मैं इतराती

जब अंबर में बादल छाते
उमड़-घुमड़ कर घिर-घिर आते
धरती पर जब वर्षा करते
उसे देखती हँसते-हँसते

मैं परियों सी सुंदर होती
हँसती रहती कभी न रोती
लाखों खिलौने मेरे सितारे
होते जो है नभ में सारे

धरती पर मैं जब भी आती
अपने खिलौने संग ले आती
नन्हे बच्चों को दे देती
कॉपी और पेन्सिल ले लेती

पढ़ती उनसे क ख ग
कर देती मामा को भी दंग
चंदा को भी मैं सिखलाती
आसमान में सबको पढ़ाती

बढ़ते कम होते मामा को
समझाती मैं रोज़ शाम को
बढ़ना कम होना नहीं अच्छा
रखो एक ही रूप हमेशा


धरती पर से लोग जो जाते
जो मुझसे वह मिलने आते
चाँद नगर की सैर कराती
उनको अपने घर ले जाती

ऊपर से दुनिया दिखला कर
चाँद नगर की सैर करा कर
पूछती दुनिया सुंदर क्यों है?
मेरा घर चंदा पर क्यों है?

धरती पर मैं क्यों नहीं रहती?
बच्चों के संग क्यों नहीं पढ़ती?
क्यों नहीं है इस पे बसेरा ?
चाँद पे होता घर जो मेरा?

सीमा सचदेव