Monday, December 31, 2007

देश को स्वर्ग बनाएँगे

देश को स्वर्ग बनाएँगे
नए साल में नई राह पर चलते जाएँगे,
नई सोच, संकल्प नया ले बढते जाएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे॥
हम सागर को मथने वाले देवों के संतान हैं,
अब अपने कदमों पर हम आकाश झुकाएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे॥
हम भारत पर मिटने वाले वीरों के अभिमान हैं,
अब हम अपने कर्मों से देश का मान बढाएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे ॥
हम नेहरु के प्यारे बच्चे गाँधी के अरमान हैं,
हम सत्य अहिंसा और शांति का संदेश सुनाएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे ॥
हम विपदाओं से लडने वाले देश के किसान हैं,
हम अपने श्रम बल से दुनिया खुशहाल बनाएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे ॥
जीने का अंदाज निराला यह अपनी पहचान है,
हम मानवता और विश्व शांति का गीत दोहराएँगे।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे ॥
नए साल में नई राह पर चलते जाएँगे,
नई सोच, संकल्प नया ले बढते जाएँगे ।
हम भारत के बच्चे देश को स्वर्ग बनाएँगे ॥
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हिन्दयुग्म के पाठकों को नववर्ष की शुभकामनाएँ!
डॉ. नंदन:- बचेली बस्तर (छ.ग.)


Saturday, December 29, 2007

बाल कवि सम्मेलन की नवीं कविता...

तितली

थी एक अकेली तितली
काले रंग की वह तितली
अपने रंग को लेकर
मन में छा गई थी उदासी
काश उसके भी जीवन में
आजाये थोड़ी-सी खुशी.....

थे सब उससे दूर
क्यों कि रंग था उसका काला
पर गाती थी वह ऐसे
जैसे भर रही हो मधु का प्याला.....

खींचा उसने सब को ऐसे
चुम्बक खींचे लोहे को जैसे
खींच गए हम सब उसकी ओर
मच गया सबके दिल में शोर.....

मिली इतनी खुशियाँ
जितनी सोची न थी उसने
लगा उसे कि उग आया है
जैसे सूरज अंधेरे में
खेलने लगी वह अपने दोस्तों के साथ
गई गीत खुशी की ले हाथों में हाथ ...

पूर्वा उत्तरेश्वर तन्मोर
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ऐ.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)


Friday, December 28, 2007

बाल कवि-सम्मेलन की आठवी कविता..

वसंत ऋतु

देखो-देखो आई -आई
अब वसंत ऋतू आई
पेड़-पेड़ पर फूल खिले
जैसे हो सब रंग मिले

वसंत ऋतू की हवा निराली
झूम रही हर डाली-डाली .
आओ सखी हम नाचे गायें ,
रंगों का त्यौहार मनाएँ .

भेद-भाव सब को भुलाकर
एक नई दुनिया रचाएं.
देखो-देखो आई -आई
अब वसंत ऋतू आई ...

- आरोही नांदेडकर
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ए.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)


हिंदी में शब्द युग्म

हिंदी भाषा में एक खास विशेषता है - इसमें प्रचलित युग्म शब्द अर्थात जुड़वा शब्द । ये हिंदी भाषा में रोचकता लाते हैं । ये शब्द युग्म हिंदी भाषा को अद्वितीय बनाते हैं । बहुत से ऐसे युग्म शब्द हैं जो अनायास ही मुंह से निकल जाते हैं । इनमें कुछ का अर्थ है , कुछ अर्थहीन होते हैं , कुछ का अलग से अस्तित्व है तो कुछ अलग होने पर अपना अस्तित्व खो बैठते हैं । आइये देखते हैं कुछ ऐसे ही युग्म शब्द - अंधा- धुंध ... अस्त- व्यस्त ... अस्त्र -शस्त्र ... अनाप- शनाप ... अच्छा- खाशा ... अलग- थलग ... अड़ोस- पड़ोस ... अजीबो -गरीब ... अदला -बदली ... अक्कड़ बक्कड़ ... आनन फानन ... आड़ तिरछा ... आंख मिचौली-- इश्क- विश्क ... इक्का दुक्का ... इंशा अल्लाह ... उलट फेर ... उधेड़ बुन ... उछल कूद ... उठा पटक ... उमड़ घुमड़ ... ऊट पटांग ... ऊबड़- खाबड़ ... ऊल- जुलूल ... ओत- प्रोत ... ऐरे गैरे ... ऐसी तैसी ...ऐसा वैसा ... ऐशो आराम ... कांट छांट ... कहा सुनी ... कर्ता धर्ता ... काम काज ... कसमे वादे ... कूड़ा कचरा ... कीड़े मकोड़े ... कच्चा पक्का ... कढ़ाई बुनाई ... हाल चाल ... कुशल क्षेम ... चीख पुकार ... खोज बीन ... खरी खोटी ... खून पसीना ... खून खराबा ... खाली पीली ... खाना खजाना ... गप शप ... गिने चुने ... गोला बारूद ... गिले शिकवे ... गाना बजाना ... गुजर बसर ... गुप चुप ... गोरा चिट्टा ... घर बार घिसा पिटा ... चाल ढ़ाल ... चूल्हा चौका ... चमक दमक ... जैसे तैसे ... जादू टोना ... जात पात ... झाड़ फूंक ... टेढ़े मेढ़े ... झुग्गी झोपड़ी ... जोर शोर ... जप तप ... चनिया चोली ... छल कपट ... ताना बाना ... छीना झपटी ... ठीक ठाक ... टोना टोटका ... टोका टाकी ... तहस नहश ... देख भाल ... धूप छांव ... धन दौलत ... नाश्ता पानी ... तितर बितर ... दाल रोटी ... थका मांदा ... ताम झाम ... रिश्ते नाते ... नाक भौं ... धक्का मुक्की ... दांव पेंच ... ठाठ बाठ ... तेज तर्रार ... ताल मेल ... पाप पुण्य ... पूजा पाठ ... पालन पोषण ... पकड़ धकड़ ... फल फूल ... मार धाड़ ... मोल भाव ... मार पीट मिला जुला ... भाग दौड़ ... यत्र तत्र ... यार दोस्त ... बड़े बूढ़े .... बोल चाल ... तोल मोल ... बन ठन ... भूले बिसरे ... राज पाट ... रंग ढ़ंग ... रोक थाम ... लेन देन ... लेखा जोखा ... सैर सपाटा ... सांठ गांठ ... सीधा सादा ... विचार विमर्श ... हेरा फेरी ... लोट पोट ... लाड प्यार ... रात दिन ... रफा दफा ... हम दम ... हाव भाव ... वाह वाह ... रंग ढ़ंग . ऐसे और भी अनेकों शब्द हैं ! क्या आप भी ऐसे वैसे दो चार शब्द बता सकते हैं ? कवि कुलवंत सिंह


Thursday, December 27, 2007

ब्लॉगर जाकिर अली "रजनीश" को बालसाहित्य सम्मान



युवा रचनाकार और ब्लॉगर जाकिर अली "रजनीश" को बाल साहित्य के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए हिन्दी सभा, सीतापुर, उ0प्र0, भारत ने बालसाहित्य पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है। उन्हें यह सम्मान हिन्दी सभा के 64वें वार्षिक समारोह में दिनांक 11 फरवरी 2008 को एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाएगा। सम्मान स्वरूप श्री रजनीश को प्रशसित पत्र, स्मृति चिन्ह एवं रू0 1100.00 की राशि सम्मान सहित भेंट की जाएगी। उल्लेखनीय है कि श्री रजनीश की बालसाहित्य में अब तक 51 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उ0प्र0 हिन्दी संस्थान तथा प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार सहित दो दर्जन संस्थाएँ श्री रजनीश को सम्मानित कर चुकी हैं। श्री रजनीश एक सक्रिय ब्लॉगर हैं। वे अपने ब्लाग "मेरी दुनिया मेरे सपने" के साथ "हमराही" एवं "बालमन" नामक ब्लॉग पत्रिका का संचालन भी करते हैं। इसके अतिरिक्त वे "हिन्द युग्म" के चर्चित ब्लॉग "बाल उद्यान" से भी नियंत्रक के रूप में जुडे हुए हैं।


बाल-दोहावली


मात पिता गुरू को करे नित्य प्रातः प्रणाम
राघव जीवन सफल हो पाये उच्च मुकाम


ठंडे जल से प्रातः ही नित्य होय स्नान
चुस्ती फुर्ती राखि दिन रुग्णो मिले निदान


विद्यालय से बे-वजह अगर लिया अवकाश
छात्र पिछ्ड़ता काम में फिरे खोदता घास


गृह-कार्य आकर करे रोज रोज का रोज
राघव शत-प्रतिशत कहे मिटे मगज का बोझ


हरी सब्जियाँ दाल और पोषक ले आहार
ह्ष्ठ पुष्ठ तन में रहे बुद्धि की भरमार


बड़ों को दे सम्मान और छोटों को दे प्यार
सबके मन को जीतता सरस मधुर व्यवहार


अगर पढ़ाई वक्त पर और समय पर खेल
राघव निश्चय जानिये कभी न होगे फेल


नये बालकवि राघव शर्मा

बाल-उद्यान बाल रचनाकारों की तलाश में है, क्योंकि बाल-उद्यान इन विचारधारा में विश्वास रखता है कि 'बच्चे होते मन के सच्चे'। और मन की सच्ची बातें ही साहित्य की श्रेणी में आती हैं। आज हम ऐसे ही एक सच्चे साहित्यकार को खोज लाये हैं, इनका नाम है राघव शर्मा जो कि कक्षा छठवीं के विद्यार्थी हैं और कविताएँ लिखने का शौक रखते हैं। पहले इनके सपनों की दुनिया से रूबरू होते हैं, धीरे-धीरे इनकी सभी कविताएँ हम प्रकाशित करेंगे।

मेरे सपनों की दुनिया

मेरे सपनों की दुनिया वहीं है
जहाँ कभी कोई न रोए।
जहाँ सब जन हँसते ही रहें
जहाँ कभी कोई गुस्सा न होए।।

मेरे सपनों की दुनिया वहीं है
जहाँ कोई न काला हो न हो सफ़ेद।
जहाँ सब धर्म आज़ाद रहें
जहाँ कोई रंग में करे न भेद।।

मेरे सपनों की दुनिया वहीं है वहीं है
जहाँ सदा अच्छाई का ही हो राज।
जहाँ कभी कुछ बुरा न हो
जहाँ बनूँ मैं सबका महाराज।।


राघव शर्मा
जन्मतिथि- ८ अगस्त १९९६
कक्षा- ६
सेंट एन्थोनी स्कूल
सेक्टर ९ फ़रीदाबाद


Wednesday, December 26, 2007

भोला बचपन ...भोले चेहरे








Tuesday, December 25, 2007

क्रिसमस केक [दीदी की पाती भाग ८]
















दीदी की पाती में आज तुमको हम
एक नई बात बताएं
आज है क्रिसमस का प्यारा सा त्योहार
चलो मिल कर ज़िंदगी को मीठे केक सा कर जाए


आओ सिखाएं आपको इस केक को बनाना
इसके लिए जरा यह सब सामान तो ले के आना

एक कप प्यार , में १०० ग्राम दयालुता ,
५०० ग्राम दुआ [प्रार्थना ] मिला के इसको नरम बनने तक हिलाना
फ़िर इस में १५० ग्राम भावना त्याग की ,
और १०० चम्मच मदद सबके लिए ५ मिनट तक रख जाना
अब इस में १०० बूंदे मुस्कराहट की
१ चम्मच सहन शक्ति के साथ अच्छे से
इन सबको मिला के फ़िर इसको पकाना

अब देखो इन सब चीजों को मिला के
ज़िंदगी का स्वाद है कितना मीठा
सबको प्यार से अपने अब यही केक तुम खिलाना


था न यह बहुत अच्छा सा केक ...क्रिसमस आते ही केक के साथ -साथ याद आते हैं ,सांता क्लाज ..) क्रिसमस का त्योहार आते ही बच्चो की खुशी का ठिकाना नही रहता सांता क्लाज आयेंगे ढेर से तोहफे लायेंगे यही उम्मीद लिए सारी दुनिया के बच्चे इनका इंतज़ार करते हैं शायद ही दुनिया का कोई बच्चा ऐसा होगा जिसे इनका इंतज़ार न होगा दुनिया भर का प्यार समेटे अपनी झोली में यह आते हैं और बच्चो को इंतज़ार होता है अपने तोहफों का जो वो चिठ्ठी [पाती] लिख के अपनी मांग उनको लिख के भेजते हैं .क्या आप जानते हैं की सांता क्लाज को हर साल कितनी पाती मिलती है .....अभी एक अखबार में पढी जानकारी के अनुसार यह पढने में आया कि ... आपको यकीन नही होगा लेकिन यह सच है हर साल उन्हें ६० लाख से भी ज्यादा पाती मिलती है और
सांता उनका जवाब देते हैं . सयुंक्त राष्ट्रीय की यूनीवर्सल पोस्ट यूनियन के अनुसार सांता क्लाज़ को ढेरों नन्हें मुन्ने बच्चों की पाती मिलती हैं सांता कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि कम से कम २० देशों के डाक विभाग सांता के नाम से आने वाली चिट्ठियों को अलग करने और फ़िर उनका जवाब देने के लिए अलग से कर्मचारी भरती करते हैं.... कई पाती पर तो सिर्फ़ इतना ही लिखा होता है सांता क्लाज़ नॉर्थ पोल ..इन चिट्ठियों का दिसम्बर में तो अम्बार लग जाता है !कनाडा डाक विभाग २६ भाषा में इनका जवाब देता है जबकि जर्मनी की डयुश पोस्ट १६ भाषा में इन का जवाब देती है कुछ देशो में तो इ- मेल से भी जवाब दिए जाते हैं पर सांता रहते कहाँ है.....यह अभी साफ साफ नही पता चल पाया है :)पर कनाडा और फ्रांस के डाक कर्मी सबसे ज्यादा व्यस्त रहते हैं क्यूंकि इन दोनों देशों में १० लाख से भी ज्यादा नन्हें मुन्ने चिट्ठी लिखते हैं
सर्दियों में मनाया जाने वाला यह त्योहार लगभग सभी देशों में मनाया जाता है लेकिन सांता को कई नामों से जाना जाता है कहीं फादर क्रिसमस ,तो कहीं सेंट निकोलस ,रूस में इन्हे डेड मोराज़ के नाम से जाना जाता है

तो यह थी दीदी की क्रिसमस केक को बनाने की विधि ,और क्रिसमस की कुछ जानकारी ....पसंद आई आपको ?हर त्योहार यही तो मिठास भरेगा हमारे जीवन में यदि हम इन सब चीजों से ज़िंदगी को जीएंगे ...यह प्यारा सा त्योहार आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाये ...यही शुभकामना है मेरी ..करे अब हम सब मिल के नए साल का स्वागत
और ढेर से चाकलेट खाए
सजाये क्रिसमस ट्री से घर अपना और धूम धमाका हम मचाएँ !!

आपकी दीदी

रंजू


Monday, December 24, 2007

मेरी प्यारी बहना/ मेरे प्यारे भैया

(1)
मेरी प्यारी बहना
मेरी छोटी प्यारी बहना
जीवन भर खुश रहना
अपनी तोतली बोली में
तुम भैया-भैया ही कहना
तेरी भोली भाली सूरत
लगती ज्यों मंदिर की मूरत
तेरा सोना रूप सलोना
दमका घर आँगन का कोना
तुम जब हँसती बोलती हो
जैसे कलियाँ चटक रही हो
जब चलती हो ठुमक-ठुमक कर
मानो गुडिया मटक रही हो
तेरा रोना और रूठ जाना
मुझे नही है भाता
तेरी तोतली बोली सुनकर
मुझे मज़ा है आता
मेरी छोटी प्यारी बहना
जीवन भर खुश रहना
अपनी तोतली बोली में
तुम भैया-भैया ही कहना
नंदन:- बचेली, बस्तर (छ.ग.)


(2)
मेरे प्यारे भैया
मेरे प्यारे भैया राजा
मुझको नही सताते हैं
हाथ पकड स्कूल ले जाते
परियों की कथा सुनाते हैं
माँ मारती - पिता डाँटते
भैया तो सहलाते हैं
मैं जब रूठती भैया मरे
मिठाई दे बहलाते हैं
कुछ भी मिलता खाने को
वे पहले मुझे खिलाते हैं
पढना- लिखना और गाना
भैया मुझे सिखाते हैं
अपने पास बिठाकर मुझको
अच्छे खेल खिलाते हैं
और कभी फुर्सत में हो तो
मुझे कार्टून भी दिखाते हैं
दिन भर पढना-लिखना उनका
समय नही गँवाते हैं
अपनी सायकिल पर बिठा मुझे
शाम की सैर कराते हैं
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नंदन:- बचेली, बस्तर (छ.ग.)


Saturday, December 22, 2007

एस॰बी॰ओ॰ए॰पब्लिक स्कूल में नोबेल पुरस्कार विजेताओं की प्रदर्शनी

दिनांक २०-१२-२००७ को एस.बी.ओ.ए.पब्लिक स्कूल में नोबल पुरस्कार प्राप्त भारतीय प्रतिभाओं का जीवन परिचय व कार्यक्षेत्र के बारे में प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। कक्षा पांचवीं, छठीं एवं सातवीं के विद्यार्थियों ने असाधारण प्रतिभा के धनी श्री रविंद्रनाथ (साहित्य), डा.चंद्र शेखर रमन (भौतिक विज्ञान), हरगोविंद खोराना (चिकित्सा), श्री शुब्रह्मन्य चन्द्रशेखर (भौतिकशास्त्र), अमर्त्य सेन (अर्थशास्त्र)मदर टेरेसा (विश्वशांति) के अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में प्राप्त विशिष्ट उपलब्धि व अमूल्य योगदान को विविध चार्ट एवं मॉडल की सहायता से बड़े ही उत्साहपूर्वक व प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया साथ ही सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अतिथियों का शंका निवारण भी किया।

प्रदर्शनी का उद्‌घाटन स्थानीय पी.ऍफ़ कमिश्नर श्री श्याम टोंग के कर कमलों से हुआ. एस.बी.आई. शाखा के डी.जी.एम श्री जयकरन, एस..बी..आई. ओ.ए.औरंगाबाद शाखा के प्रेसिडेंट श्री सुनील शिंदे, सेक्रेटरी श्री एन .के जोशी कोषाध्यक्ष श्री पी.एन.देशमुख एवं अन्य ट्रस्टी की उपस्थिति एवं उनके द्वारा सराहे गए प्रसंशनीय शब्द न केवल विद्यार्थी बल्कि सभी शिक्षिकाओं के मनोबल भी बढ़ा रहे थे। प्रशासिका ...श्रीमती अनिता शिध्हये, मुख्याध्यापिकाएं श्रीमती सुरेखा माने व श्रीमती अर्चना फडके के अतुल्य मार्गदर्शन, एवं तमाम शिक्षिकाएँ व विद्यार्थियों के सहयोग से ही इस प्रदर्शनी का आयोजन सम्भव हो सका।

झलकियाँ





















(निवेदन- कृपया आप भी अपने आस-पास के किसी भी स्थल पर हो रहे इस तरह के आयोजनों की पूरी रिपोर्ट bu.hindyugm@gmail.com पर भेजें)