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चित्र आधारित बाल कविता लेखन प्रतियोगिता
इस चित्र को देखते ही आपका मन कोई कोमल-सी कविता लिखने का नहीं करता! करता है ना? फिर देर किस बात की, जल्दी भेजिए। आखिरी तारीख- 30 मई 2010
Posted by Dr. Seema Kumar at 11:22 PM
Labels: bachchon ki kavitayen, bhola bachpan, Tasveer, तसवीर 12 comments
(प्यारे बच्चों, पर्यावरण को बचाना आज सबसे बडी आवश्यकता है और यह पुनीत कार्य आप कर सकते हो वृक्ष लगा कर। आज आपके मित्र योगेश जाधव वृक्ष का महत्व आपको समझाने प्रस्तुत हुए हैं।)
मत काटो हमें क्योंकि
संसार को हम बचाते हैं
जग की शोभा बढ़ाते हैं
पक्षियों को हम ललचाते हैं...
हमारे ही कारण होता है
वर्षा का हँसमुख आगमन
जिसके कारण ही होता है
किसान का खुशहाल चमन....
हमारे ही फल तुम खाते हो
और खाकर भूल जाते हो
नहीं समझते हमारे कर्म को
जो उत्साहित करते हरियाली को....
मत काटो हमें निर्दयी मानव
जिस पर तुम्हारा जीवन निर्धारित है
हम भी रहें....तुम भी रहो....
यह बात समझनी ज़रूरी है ....
योगेश जाधव
कक्षा:9 वीं
एस. बी.ओ. ए.पब्लिक स्कूल,
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
बच्चों आप सबने अपने घरों में चीटियाँ जरूर देखी होंगी, छोटी, बड़ी, काली, लाल. चलिए रोचक जानकारियों के इस अंक में आज सारथी अंकल आपको बताएँगे, इन्ही नन्ही नन्ही चीटियों की कुछ और मजेदार बातें।
चीटियों का भी अपना एक साम्राज्य होता है, राजे और रानियाँ होती है, ढेर सारे गुलाम होते हैं, जिनके सुपुर्द अनेकों काम होते हैं, सेनाएं होती है, जिनमे सामर्थ होता है बड़े से बड़े दुश्मन को दांतों चने चबाने का, हैं न मजेदार बात.
करीब २ हज़ार से भी अधिक प्रजातियाँ इनमे पायी जाती हैं, सबसे बड़े (करीब ३ इंच की ) चीटियाँ मिलती हैं अफ्रीका में, चीटियाँ अक्सर छोटे बड़े समुदायों में बंट कर रहती हैं, जो लगभग पूरी दुनिया में पायी जाती हैं, हर समुदाय के पास अपनी-अपनी फौज होती है, कल्पना कीजिये, एक समुदाय की फौज दूसरे समुदाय की फौज से लड़ रही है, जीतने वाली फौज के सिपाही पराजित सिपाहियों के समुदाय को उनके बिलों से बाहर खदेड़ देते हैं, यहाँ तक की उनके अण्डों पर भी कब्जा जमा लेते हैं, बाद में उन अण्डों से जो चीटियाँ निकलती हैं उन्हें ये अपना गुलाम बना लेते हैं. बहुत बुरा करते हैं... हैं न बच्चों.
करोड़ों चीटियाँ ( एक प्रजाति की ) किसी साम्राज्य मे एक राजा के छत्रछाया में गुजारा कर लेती हैं, राजा प्रशासन का काम देखता है और रानी मजदूरों और गुलामों से काम करवाती है, कुछ कृषक चीटियाँ भी होती है जो सब के लिए दूर दूर जाकर भोजन का प्रबंध करती है.
कुछ चीटियाँ मांसाहारी भी होती है, जो अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों मे पायी जाती हैं, ये करोड़ों की संख्या में अपने शिकार के लिए निकलती हैं, और अगर कोई शिकार मिल जाए तो उससे चिपट जाती हैं और उसे पूरा का पूरा चट कर जाती हैं.... हैं न खतरनाक भी, ये चीटियाँ.
तो बच्चों कैसा लगा चीटियों की इस दुनिया के बारे में जानकर, सारथी अंकल फ़िर मिलेंगे एक नयी जानकारी के साथ, तब तक अपना ख्याल रखें, जल्द मुलाकात होगी
आसमान में बादल छाए होने के कारण उस समय काफी अंधेरा था। हालांकि घड़ी में अभी साढ़े चार ही बजे थे, लेकिन इसके बावजूद लग रहा था जैसे शाम के सात बज रहे हों। लेकिन सलिल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने हाथ में गुलेल लिए सावधानीपूर्वक अगे की ओर बढ़ रहा था। उसे तलाश थी किसी मासूम जीव की, जिसे वह अपना निशाना बना सके। नन्हें जीवों पर अपनी गुलेल का निशाना लगाकर सलिल को बड़ा मज़ा आता। जब वह जीव गुलेल की चोट से बिलबिला उठता, तो सलिल की प्रसन्नता की कोई सीमा न रहती। वह खुशी के कारण नाच उठता।
अचानक सलिल को लगा कि उसके पीछे कोई चल रहा है। उसने धीरे से मुड़ कर देखा। देखते ही उसके पैरों के नीचेकी ज़मीन निकल गयी और वह एकदम से चिल्ला पड़ा। सलिल से लगभग बीस कदम पीछे दो चिम्पैंजी चले आ रहे थे। सलिल का शरीर भय से कांप उठा। उसने चाहा किवह वहां से भागे। लेकिन पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया। देखते ही देखते दोनों चिम्पैंजी उसके पास आ गये। उन्होंनेसलिल को पकड़ा और वापस उसी रास्ते पर चल पड़े, जिधर से वे आए थे।
कुछ ही पलों में सलिल ने अपने आप को एक बड़ से चबूतरे के सामने पाया। चबूतरे पर जंगल का राजा सिंह विराजमान था और उसके सामने जंगल केतमाम जानवर लाइन से बैठे हुए थे। सलिल को जमीन पर पटकते हुए कए चिम्पैंजी ने राजा को सम्बोधित करकहा, “स्वामी, यही है वह दुष्ट बालक, जो जीवों को अपनी गुलेल से सताता है।”
Posted by नियंत्रक । Admin at 10:30 AM
Labels: Bal Kahani, Bal Sahitya, Zakir Ali Rajnish, बाल विज्ञान कथा, बाल साहित्य 9 comments
आप सब अपने दोस्तों के जन्म दिन पर उनके घर जाते हैं.. गिफ़्ट और ग्रीटिगं कार्ड भी ले कर जाते हैं. आपके दोस्त को कितना अच्छा लगेगा अगर वो गिफ़्ट या ग्रीटिंग कार्ड आपने स्वंय परिश्रम करके बनाया हो. आज हम बेबी बीयर का चित्र बनाना सीखेंगे जो एक केक लेकर बैठा है.
सबसे पहले पेन्सिल से बेबी बीयर के सिर, पेट और पेरो का बाहरी आकार बनायेंगे... जैसा नीचे चित्र में दिखाया गया है
उसके बाद नीचे दिये चित्र के अनुसार उसके कान, भवों, आंखो, मुहं और केक को आकार देकर उभारेंगे .
इसके बाद केक के उपर हैपी बर्थडे लिखेंगे आप चाहें तो साथ में दोस्त का नाम भी लिख सकते हैं.. केक को चाक्लेट और क्रीम से भी सजाया जाता है आप चाहें तो उस पर फ़ूल पत्ते बना सकते हैं. बेबी बियर की सुन्दर क्लिप भी लगाईये और उसके पीछे सुन्दर सुन्दर फ़ूल बनाईये.
बस चित्र तैयार सा ही है.. फ़ूलों को ढंग से आकार दीजिये.. और पेरों हाथों को भी आकार दीजिये... याद रखिये कि बाहरी आकार बनाते समय हमें बहुत हल्की पेन्सिल चलानी चाहिये ताकि मिटाने पर कागज काला न हो और हम उसे मन चाहे रूप में दोबारा आकार दे सकें.
चित्र तैयार होने पर उसमें मन चाहे रंग भरें...चित्र को मोटे कार्ड पर बनाया जाये तो ग्रीटिगं कार्ड सा ही लगेगा.. उसके दूसरे फ़ोल्ड पर आप कोई मेसेज या शुभकामना संदेश भी लिख सकते हैं.
घर पर बनाना जरूर... अगर पहली बार में सही न बनें तो निराश न हों... कोशिश करते रहें.. एक दिन जरूर आप बडे कलाकार बनेगे... जो हिम्मत नहीं हारते.. उन्हीं की जीत होती है..
सुबह सुबह ही चिडिया बोली
कानो मे अमृत सी घोली
सुबह सुबह
झट-पट बच्चों जागो तुम
करो प्रभु का धन्यवाद तुम
माँ-बाबा को करो प्रणाम
सुबह सुबह
नित्य क्रिया से जब निपटो
पहले मुँह हाथ धो लो
फिर ध्यान लगा कर करो पढाई
सुबह सुबह
हलका नाशता कर लो
भर के ग्लास दुध पियो
बनो स्ट्रॉंग जैसे हनुमन
सुबह सुबह
ड्रेस पहन कर स्कूल चलो
बिन शैतानी, खूब पढो
तुम बन दिखलाओ विद्वन
सुबह सुबह
स्कूल से लौट आराम करो
फिर फ्रेश हो कर कुछ खा लो
फिर जी भर खेलो कूदो
सचिन बनो तुम
दिन रहते घर आ जाओ
होमवर्क सब निपटाओ
सुनो कहानी दादी माँ से
प्यार करो दादू संग तुम
शाम ढले
डट कर खाना खाओ फिर
और टहल कर आओ फिर
सोने से पहले ब्रश करना
और प्रभु को धन्यवाद
रात समय
फिर प्यार से सो जाओ
सपनों की दुनिया बनाओ
चाँद पर भी घूम आओ
रात ढले
- रचना सागर
आज हम आपका परिचय बाल लघु-नाटककार से करवाने जा रहे हैं।
नाम: ओंकार कॉरवार,
कक्षा: नौवीं,
स्कूल: एस. बी. ओ. ए.पब्लिक स्कूल,औरंगाबाद.
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( गली के आवारा कुत्ते मैदान में...............)
मॅनिटर : हाँ तो सब कुत्ते आ गए? खुजली करने वाले, कटे कान वाले, भौंकने वाले और काटने वाले.....?
- प्रवीण पंडित
बच्चों, हम सब को हमारी दादी माँ कई सारी कहानियाँ सु्नाया करती हैं। आज चलो हम उसी दादी माँ की हीं कहानी सुनते हैं, सुनते हैं कि वो हमें कितना प्यार करती है।
मुझको भाते मेरे पापा
और है मुझको भाती माँ,
हैं भाते हम तीनों जिनको
वो है मेरी दादी माँ।
पौ फटते उठ जाती है वो,
मुझे देख चैन पाती है वो,
दातून-वातून छोड़-छाड़के,
मुझे नहलाती-खिलाती है वो।
कभी गोद में ले बहलाती है,
कभी झूले में झूलाती है,
मैं जो कभी रूठ भी जाऊँ,
दे "लेमन जूस" मनाती है।
जब पापा आफिस जाते हैं,
दादी के पास वो आते हैं,
दादी के पैर जब वो छूते हैं
तो मुझको बहुत सुहाते हैं।
मेरी दादी सीधी, सच्ची है,
बड़ी भोली है, बड़ी अच्छी है,
मेरी माँ को बहुत चाहती है,
मेरी माँ तो उसकी बच्ची है।
मैं बड़ा जब हो जाऊँगा,
उसे गोद में ले घुमाऊँगा,
माँ-पापा ताली बजाएँगे,
इस तरह उसे सजाऊँगा।
मेरी दादी , बूढी दादी मेरी,
तुम हीं तो हो आबादी मेरी,
तुम जीवन भर संग रहना मेरे,
ओ दादी मेरी, शहजादी मेरी।
बच्चों , मुझे पता है कि दादी माँ कितनी प्यारी होती है। मैं अपनी दादी माँ को दस साल पहले खो चुका हूँ । आज उसकी याद आई तो सोचा कि तुम सब को तुम्हारी दादी माँ का महत्व बता दूँ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
दस बाँहों वाली दुर्गा माँ की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ बनाई गई थीं जिसमें दुर्गा माँ को महिषासुर राक्षस का वध करते हुए दिखाया गया था ।
हिन्दू मिथक के अनुसार असुरों का राजा रंभ जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से असुर महिषासुर का आगमन हुआ। संस्कृत में 'महिष' का अर्थ भैंस होता है। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रुप धारण कर सकता था। महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और उनका वरदान था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा । उसने स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया । सारे देवता मिलकर उसे परास्त करने के लिए युद्ध करते परंतु वे हार जाते ।
कोई उपाय न पाकर देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का सृजन किया जिसे 'शक्ति' और 'पार्वती' के नाम से भी जाना जाता है । देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया । इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार 'दुर्गा पूजा' मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है ।
सुबह-शाम दुर्गा जी की आरती की जाती है और ढ़ोल तथा 'ढ़ाक' बजाए जाते हैं और बजाते हुए लोग नाचते-झूमते भी हैं ।
तेजल ने भी अपने नानाजी के कंधे पर बैठकर आरती देखा :) ।
और उसके बाद बाहर मेले में झूलों और खेल का और बच्चों के साथ आनंद भी उठाया और खिलौने भी खरीदे ।
चित्र : सीमा कुमार
प्यारे बच्चो,
नियमित बाल-साहित्य-सृजक की अनुपस्थिति में हमारा प्रयास रहता है कि आपकी रचनाओं को भी हिन्द-युग्म के इस मंच पर जगह दी जाय ताकि आपकी रचानात्मकता भी निख़र कर बाहर आ सके। यदि आप भी लिखते हैं तो शर्माना छोड़िये और अपनी रचनाएँ, परिचय व फोटो सहित bu.hindyugm@gmail.com पर भेजिए। बच्चो, इसी कड़ी में आज आपके समक्ष औरंगाबाद, महाराष्ट्र के करन सुगंधी अपनी रचना "साल में जब हो सौ छुट्टियाँ" लेकर आये हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
बच्चों आज मै आपको एक लोमड़ रानी औरे एक बगुले की कहानी सुनाने जा रही हूँ...
सुनो ध्यान लगा कर ये कहानी
एक था बगुला एक थी लोमड़ रानी...
एक दिन दोनो दोस्त बने
एक दूजे से गले मिले...
फ़िर लोमड़ ने कहा बगुले से
आना दावत खाने घर पर मेरे...
सुनकर लोमड़ का आमंत्रण
बगुला बहुत ही प्रसन्न हुआ...
सज-धज कर निकला घर से
लोमड़ के वो घर पहुँचा...
लेकिन लोमड़ बड़ी सयानी
दावत में भी कंजूस रही
बैठा बगुले को कुर्सी पर
शोरबा भी प्लेट में परोस रही...
लम्बी नुकीली चोंच से बगुला
कुछ भी खा न पाया
उधर लोमड़ ने लप-लप करके
शोरबा सारा चाट खाया..
बगुला बहुत ही दुखी हुआ
कुछ न बोला लोमड़ से
आभार जता कर दावत का
बुलाया उसको भी दावत पे...
लोमड़ रानी प्रसन्न हुई
सोचा कितना पागल है
मैने कितना बुध्दू बनाया
फ़िर भी कितना कायल है
अब बगुले की बारी आई
किया जैसे को तैसा
लम्बी गर्दन के बर्तन में
लोमड़ को सूप परोसा
लोमड़ कुछ भी खा न सकी
हाथ मलती रह गई
बगुला सारा सूप पी गया
लोमड़ जीभ लटकाती रह गई
अब लोमड़ की समझ में आया
जैसे उसने बगुले को उल्लू बनाया
बगुले ने भी उसे बुलाकर
वैसा दावत का ऋण चुकाया..
तो बच्चों मानो बात ये मेरी
सौ बातों की बात अकेली...
जैसे तो तैसा मिलता है
यही नियम है जग का
करो न धोखा जीवन में
नही मिलेगा तुमको धोखा...
तो प्यारे बच्चो आपको यह कहानी कैसी लगी बताना...और इस कहानी में आप ही कि तरह एक बाल कलाकार (आदित्य चोटिया) की बनाई तस्वीरें लगाई गई है
अच्छा तो फ़िर मिलेंगे कहानी-काव्य के साथ...आप सभी को दशहरे की हार्दिक बधाई...
सुनीता(शानू)
प्यारे बच्चों..
आज दशहरा है। आप सब खूब मस्ती के मूड में होगे। मम्मी पापा आपको मेला घुमाने की तैय्यारी कर रहे होंगे और आपके मन में भी खूब लड्डू फूट रहे होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दशहरा क्यों मनाया जाता है?
हर बुरे काम का अंत बुरा होता है। बुरे व्यक्ति, बुरी सोच और बुरे प्रयास हमेशा अच्छे व्यक्ति, अच्छी सोच और अच्चे प्रयासों से समाप्त हो जाते हैं। रावण की कहानी तो आपको आपके मम्मी पापा नें अवश्य सुनायी होगी। रावण बहुत अत्याचारी राजा था। वह हमेशा जंगल में तपस्या कर रहे ऋषि-मुनियों को तंग करता और लोगों को डरा कर राज्य कर रहा था। उसने वन-वास पर गये राम चंद्र जी की पत्नि सीता जी का धोखे से अपहरण कर लिया। इस पर राम चंद्र जी नें वानरों और भालुओं की सहायता से लंका पर आकमण कर रावण पर विजय प्राप्त की। रावण के पुतले, इसी विजय को आज तक जीवित रखे हुए हैं।
यह प्रतीक है कि आज भी यह सत्य कायम है और “बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है”।
आप सभी को दशहरे की शुभकामनायें।
प्यारे बच्चो,
नियमित बाल-साहित्य-सृजक की अनुपस्थिति में हमारा प्रयास रहता है कि आपकी रचनाओं को भी हिन्द-युग्म के इस मंच पर जगह दी जाय ताकि आपकी रचानात्मकता भी निख़र कर बाहर आ सके। यदि आप भी लिखते हैं तो शर्माना छोड़िये और अपनी रचनाएँ, परिचय व फोटो सहित bu.hindyugm@gmail.com पर भेजिए। बच्चो, इसी कड़ी में आज आपके समक्ष औरंगाबाद, महाराष्ट्र के योगेश रंगद्ल अपनी रचना "जीवन के रस" लेकर आये हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
बच्चों यानि कि मेरे प्यारे प्यारे दोस्तों!!
बात तब की है जब मैं बहुत छोटी थी। छोटी तो अब भी हूँ, क्योंकि अब भी पापा मुझे गोदी में उठाते हैं। लेकिन यह घटना तब की है जब मैं केवल गोदी में रहती थी और घुटने के बल ही चला करती थी। उस शाम पापा और मम्मी एक फिल्म देख रहे थे। फिल्म बडी मजेदार थी जिसका नाम था “बेबी डे आउट”। मेरे जैसा ही शैतान बच्चा उसमें बहुत धमाल मचाता है और अच्छों-अच्छों की नाक में दम करता है। फिल्म देखते हुए, पापा ऑफिस के किसी टूर पर जाने की बात कर रहे थे। ऑफिस के टूर का मतलब है कि वो मुझे नहीं ले जायेंगे। यह बात मुझे उदास करने लगी। मैंने भी आईडिया लगा लिया।
शाम को जब मम्मी पापा के टूर जाने की तैयारी कर रही थी मेरी नजर पापा के सूटकेस पर पडी। सूटकेस इतना बडा था कि मैं आराम से उसमें बैठ कर छुप सकती थी। मेरे दिमाग में आईडिया का बल्ब जल उठा। मम्मी की नजर बचा कर मैंने बैग में तकिया डाला। इससे मेरा सफर आराम दायक बन जाता और मैं पापा के बैग में छिप कर पापा के साथ घूम भी आती। अब मैं बैग के अंदर घुस कर यह देखने की कोशिश करने लगी कि मेरी योजना में कहीं कोई कमीं तो नहीं है।
लेकिन हमेशा सोचा हुआ नहीं होता।
बैग मेरी धमाचौकडी से हिल गया और उसका ढक्कन बंद। अब मैं बैग के अंदर थी और भीतर बहुत अंधेरा था।
अंदर मुझे साँस लेने में दिक्कत होने लगी। एक दिन पापा से ही मैने सुना था कि साँस लेने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और बंद जगह में ऑक्सीजन कम होने से घुटन हो जाती है। मुझे भी बैग के भीतर घुटन होने लगी, लेकिन मुझे यह भी समझ में आ गया था कि मेरी योजना फेल हो गयी है। मम्मी की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। कुहू-कुहू का शोर मचाती हुई वो मुझे ढूंढ रही थीं। ये बडे भी बहुत परेशान करते हैं बच्चों को थोडी देर भी अकेला नहीं रहने देते। मैंने भी सोचा कि पापा के साथ टूर न सही मम्मी के साथ लुका-छिपि ही सही।
मम्मी सही कहती हैं कि मुझे शांत बैठना नहीं आता। बैग को हिलता देख मम्मीं नें मुझे ढूंढ निकाला।
मम्मी को देख कर मैं मुस्कुराने लगी। मम्मी को भी मेरा खेल बहुत अच्छा लगा था क्योंकि वो भी मुझे देख कर हँसने लगीं थीं।
फिर मम्मीं नें मुझे बाहर निकाला।
बैग के उपर बिठा कर पूछा “अगर अंदर ही रह जाती तो?”।
मैं भी यह सोच कर डर गयी। शरारत एसी करनी चाहिये जो अपना या दूसरे का नुकसान न करे। कभी भी अकेले कमरे में अंदर से छिटकनी नहीं लगानी चाहिये, बाथरूम अंदर से बंद नही करना चाहिये अगर हाथ ठीक से कुंडी तक नहीं पहुँचता हो। साथ ही अंधेरी या बंद जगह छिपना भी नहीं चाहिये इसमे दम घुटने का खतरा हो सकता है। मुझे यह मजेदार सबक मिल चुका था।
- आपकी कुहू
*** राजीव रंजन प्रसाद
दीदी की पाती ...
नमस्कार ,प्रणाम ,सलाम ,हेलो :)
कैसे हो आप सब ? क्या कहा सर्दी ज़ुकाम से परेशान हैं ओहह्ह्ह्ह यह तो बहुत गड़बड़ बात है आपने ध्यान नही रखा ना , कि अब मौसम बदलने लगा है... मौसम के मिजाज़ भी बदलते रहते हैं ..कभी गरमी कभी सर्दी .. ठंडा ठंडा लगता है न सुबह शाम :)आज आपको बताती हूँ इसी मौसम के एक रंग यानी ओलो और स्नो्फाल के बारे में
कभी कभी तेज बारिश के साथ अचानक छोटे -बड़े बर्फ के गोले गिरने लगते हैं, जिन्हे ओले कहते हैं देख के दिल में आता तो है न यह कहाँ से आ गए?
कैसे गिरने लगे ? आओ तुम्हे बताएं कि यह कैसे बनाते हैं ..
होता क्या है ,जब बादलों से वर्षा की बूँदे गिरती हैं धरती पर तो हवा उन्हे फिर तेज़ी से उपर ले जाती है
अब वहाँ होती है बहुत सर्दी अब यह मासूम वर्षा की बूँदे बन जाती हैं बर्फ़ ...!अब जब यह नीचे गिरने
लगती है यानी की धरती के पास तो पानी की परत इनके उपर जमा होती जाती है और यह गोले बन जाते हैं
जब यह ठंडी जगह से हो कर निकलते हैं तो ओले बन जाते हैं अब यह इतने मोटू हो जाते हैं की अब हवा कितनी कोशिश करे इन्हे उपर नही ले जा पाती कभी कभी तो यह कई कई किलो के भी हो जाते हैं जैसे 14 एप्रिल 1986 को बंगला देश के गोपाल गंज ज़िले में 1.02 किलोग्राम के वज़न के ओले गिरे थे
अमरीका के काफ़ीविलो और केंसास नगर में 3 दिसंबर 1970 में 750 ग्राम वज़न के ओले पड़े उन ओलों का व्यास 19 सेंटी मीटर तक था जर्मनी के एक्सन नामक नगर में जब ओले गिरे तो अंदर एक मछली भी जमी हुई मिली
इनके होने से फ़सल खराब हो जाती है पर या बेमौसम बर्फ़ का मज़ा भी देती है
यह तो हुई ओलों की बात पर ऊँचे पहाडों पर बारिश के आलावा बर्फ भी गिरती है यह ऊँचे पहाडों पर रुई के नन्हे नन्हे रेशों की तरह गिरती है एक दम मुलायम और सफ़ेद !
अब यह कैसे गिरती है ? क्या पता है आपको ...? इस ठंडी बर्फ के जन्म में गरमी अपना काम करती है गरमी के कारण समुन्द्र और नदियों का पानी भाप बन के उड़ जाता है यह भाप बहुत हलकी होती है इसलिए यह ऊपर ऊपर उठती जाती है और यही भाप फ़िर बारिश बन के बरसती है ! अब ऊंचाई पर तो तापमान होता है कम सो वहाँ यह ठंड के कारण बर्फ मॆं बदल जाती है यही कण एक दूसरे से मिल कर बर्फ के रेशे बन जाते हैं और जब यह गिरती है तो इस को ही कहते हैं बर्फ़बारी या स्नोफाल !
अब यदि यह ओला बन के गिरे तो नुकसान हो जाता है और बर्फ बन के गिरे तो लाभ ही लाभ ,अब आप कहोगे वो कैसे ?अरे जब गरमी आएगी तो यही बर्फ पिघल कर बनेगी पानी और भर देगी हमारी नदियों को ...फ़िर वही चक्र चलेगा और हम यूं कुदरत के खुबसूरत नज़ारे देखते रहेंगे !
चलो अब आपको बात दिया कि यह बर्फ कैसे पड़ती है आप अब सर्दी ज़ुकाम को जल्दी से दूर भगाओ
क्यूंकि आ गए हैं अब नवरात्रे ,और ढेर सारे त्योहारों का मौसम दशहरा, दिवाली ,यानि कि खूब मस्ती और करेंगे अब हम सब मिल के हल्ला गुल्ला ...:)
अपना रखो ध्यान ,दीदी जल्दी आएगी आपके पास फ़िर ले के कोई नई बात :)
आपकी दीदी रंजना