Sunday, October 28, 2007

बाल विज्ञान कथा : छोटी सी बात (लेखक: जाकिर अली 'रजनीश')

आसमान में बादल छाए होने के कारण उस समय काफी अंधेरा था। हालांकि घड़ी में अभी साढ़े चार ही बजे थे, लेकिन इसके बावजूद लग रहा था जैसे शाम के सात बज रहे हों। लेकिन सलिल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने हाथ में गुलेल लिए सावधानीपूर्वक अगे की ओर बढ़ रहा था। उसे तलाश थी किसी मासूम जीव की, जिसे वह अपना निशाना बना सके। नन्हें जीवों पर अपनी गुलेल का निशाना लगाकर सलिल को बड़ा मज़ा आता। जब वह जीव गुलेल की चोट से बिलबिला उठता, तो सलिल की प्रसन्नता की कोई सीमा न रहती। वह खुशी के कारण नाच उठता।

अचानक सलिल को लगा कि उसके पीछे कोई चल रहा है। उसने धीरे से मुड़ कर देखा। देखते ही उसके पैरों के नीचेकी ज़मीन निकल गयी और वह एकदम से चिल्ला पड़ा। सलिल से लगभग बीस कदम पीछे दो चिम्पैंजी चले आ रहे थे। सलिल का शरीर भय से कांप उठा। उसने चाहा किवह वहां से भागे। लेकिन पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया। देखते ही देखते दोनों चिम्पैंजी उसके पास आ गये। उन्होंनेसलिल को पकड़ा और वापस उसी रास्ते पर चल पड़े, जिधर से वे आए थे।

कुछ ही पलों में सलिल ने अपने आप को एक बड़ से चबूतरे के सामने पाया। चबूतरे पर जंगल का राजा सिंह विराजमान था और उसके सामने जंगल केतमाम जानवर लाइन से बैठे हुए थे। सलिल को जमीन पर पटकते हुए कए चिम्पैंजी ने राजा को सम्बोधित करकहा, “स्वामी, यही है वह दुष्ट बालक, जो जीवों को अपनी गुलेल से सताता है।”


शेर ने सलिल को घूर कर देखा... “क्यों मानव पुत्र, तुम ऐसा क्यों करते हो?”

सलिल ने बोलना चाहा, लेकिन उसकी ज़बान से कोई शब्द न फूटा। वह मन ही मन बड़बड़ाने लगा, “क्योंकि मैंजानवरों से श्रेष्ठ हूं।”

“देखा आपने स्वामी ?” इस बार बोलने वाला चीता था, “कितना घमंड है इसे अपने मनुष्य होने का। आप कहें तो मैं अभी इसका सारा घमंड निकाल दूं ?” कहते हुए चीता अपने दाहिने पंजे से ज़मीन खरोंचने लगा।

सलिल हैरान कि भला इन लोगों को मेरे मन की बात कैसे पता चल गयी? लेकिन चीते की बात सुनकर वह भी कहां चुप रहने वाला था। वह पूरी ताकत लगाकर बोल ही पड़ा, “हां, मनुष्य तुम सब जीवों से श्रेष्ठ है, महान है। और ये प्रक्रति का नियम है कि बड़े लोग हमेशा छोटों को अपनी मर्जी से चलाते हैं।”

तभी आस्ट्रेलियन पक्षी ‘नायजी स्क्रब’, जिसकी शक्ल कोयल से मिलती मिलती–जुलती है, उड़ता हुआ वहां आया और सलिल को डपट कर बोला, “बहुत नाज़ है तुम्हें अपनी आवाज़ पर, क्योंकि अन्य जीव तुम्हारी तरह बोल नहीं सकते। पर इतना जान लो कि सारे संसार में मेरी आवाज़ का कोई मुकाबला नहीं। दुनिया की किसी भी आवाज़ कीनकल कर सकती हूं मैं। ...क्या तुम ऐसा कर सकते हो?” सलिल की गर्दन शर्म से झुक गयी और नायजी स्क्रबअपने स्थान पर जा बैठी।

सलिल के बगल में स्थित पेड़ की डाल से अपने जाल के सहारे उतरकर एक मकड़ी सलिल के सामने आ गयी औरफिर उस पर से सलिल की शर्ट पर छलांग लगाती हुई बोली, “देखने में छोटी ज़रूर हूं, पर अपनी लम्बाई से 120 गुना लम्बी छलांग लगा सकती हूं। ..क्या तुम मेरा मुकाबला कर सकते हो? कभी नहीं। तुम्हारे अंदर यह क्षमता हीनहीं। पर घमंड ज़रूर है 120 गुना क्यों?” कहते हुए उसने दूसरी ओर छलांग मार दी।

तभी गुटरगूं करता हुआ एक कबूतर सलिल के कंधे पर आ बैठा और अपनी गर्दन को हिलाता हुआ बोला, “मेरी याददाश्त से तुम लोहा नहीं ले सकते। दुनिया के किसी भी कोने में मुझे ले जाकर छोड़ दो, मैं वापस अपने स्थान पर आ जाता हूं।”

सलिल सोच में पड़ गया और सर नीचा करके ज़मीन पर अपना पैर रगड़ने लगा।

“मैं हूं गरनार्ड मछली। जल, थल, नथ तीनों जगह पर मेरा राज है।” ये स्वर थे पेड़ पर बैठी एक मछली के, “..पानी में तैरती हूं, आसमान में उड़ती हूं और ज़मीन पर चलती हूं। अच्छा, मुझसे मुकाबला करोगे?”

ठीक उसी क्षण सलिल के कपड़ों से निकल कर एक खटमल सामने आ गया और धीमें स्वर में बोला, “सहनशक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे हैं। यदि एक साल भी मुझे भोजन न मिले, तो हवा पीकर जीवित रह सकता हूं। तुम्हारी तरह नहीं कि एक वक्त का खाना न मिले, तो आसमान सिर पर उठा लो।”

खटमल के चुप होते ही एल्सेशियन नस्ल का कुत्ता सामने आ पहुंचा। वह भौंकते हुए बोला, “स्वामीभक्ति में मनुष्य मुझसे बहुत पीछे हैं। पर इतना और जानलो कि मेरी घ्राण शक्ति (सूंघने की क्षमता) भी तुमसे दस लाग गुना बेहतर है।”

पत्ता खटकने की आवाज़ सुनकर सलिल चौंका और उसने पलटकर पीछे देखा। वहां पर ‘बार्न आउल’ प्रजाति का एक उल्लू बैठा हुआ था। वह घूर कर बोला, “इस तरह मत देखो घमण्डी लड़के, मेरी नज़र तुमसे सौ गुना तेज़ होती है समझे?”

सलिल अब तक जिन्हें हेय और तुच्छ समझ रहा था, आज उन्हीं के आगे अपमानित हो रहा था। अन्य जीवों की खूबियों के आगे वह स्वयं को तुच्छ अनुभव करने लगा था। इससे पहले कि वह कुछ कहता या करता, दौड़ता हुआ एक गिरगिट वहां आ पहुंचा और अपनी गर्दन उठाते हुए बोला, “..रंग बदलने की मेरी विशेषता तो तुमने पढी होगी, पर इतना और जान लो कि मैं अपनी आंखों से एक ही समय में अलग–अलग दिशाओं में एक साथ देख सकताहूं। मगर तुम ऐसा नहीं कर सकते। कभी नहीं कर कसते।”

दोनों चिम्पैंजियों के मध्य खड़ा सलिल चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। भला वह जवाब देता भी, तो क्या? उसमें कोई ऐसी खूबी थी भी तो नहीं, सिसे वह बयान करता। वह तो सिर्फ दूसरों को सताने में ही अभी तक आगे रहा था।

तभी चीते की आवाज सुनकर चलिल चौंका। वह कह रहा था, “खबरदार, भागने की कोशिश मत करना। क्योंकि मेरी 112 किमी0 प्रति घण्टे की रफतार है मेरी। और तुम मुझसे पार पाने के बारे में सपने में भी न सोच सकोगे। क्योंकि तुम्हारी यह औकात ही नहीं है।”

“क्यों नहीं है औकात?” चीते की बात सुनकर सलिल अपना आपा खो बैठा और जोर से बोला, “मैं तुम सबसे श्रेष्ठ हूं, क्योंकि मेरे पास अक्ल है। ...और वह तुममें से किसी के भी पास नहीं है।”


सलिल की बात सुनकर सामने के पेड़ की डाल से लटक रहा चमगादड़ अपनी जगह से बड़बड़ाया, “बड़ा घमण्ड है तुझे अपनी अक्ल पर नकनची मनुष्य। तूने हमेशा हम जीवों की विशेषताओं की नकल करने की कोशिश की है। जब तुम्हें मालूम हुआ कि मैं एक विशेष की प्रकार की अल्ट्रा साउंड तरंगे छोड़ता हूं, जो सामने पड़ने वाली किसी भी चीज़ से टकरा कर वापस मेरे पास लौट आती हैं, जिससे मुझे दिशा का ज्ञान होता है, तो मेरी इस विशेषता का चुराकर तुमने राडार बना लिया और अपने आप को बड़ा बु‍द्धिमान लगे?”

“बहुत तेज़ है अक्ल तुम्हारी?” इस बार मकड़ी कुर्रायी, “ऐसी बात है तो फिर मेरे जाल जितना महीन व मज़बूत तार बनाकर दिखाओ। नहीं बना सकते तुम इतना महीन और मज़बूत तार। इस्पात के द्वारा बनाया गया इतना ही महीन तार मेरे जाल से कहीं कमज़ोर होगा। ...और तुम्हारे सामान्य ज्ञान में वृद्धि के लिए एक बात और बता दूं कि यदि मेरा एक पौंड वजन का जाल लिया जाए, तो उसे पूरी पृथ्वी के चारों ओर सात बार पलेटा जा सकता है।”

इतने में एक भंवरा भी वहां आ पहुंचा और भनभनाते हुए बोला, “वाह री तुम्हारी अक्ल? जो वायु गतिकी के नियम तुमने बनाए हैं, उनके अनुसार मेरा शरीर उड़ान भरने के लिए फिट नहीं है। लेकिन इसके बावजूद मैं बड़ी शान से उड़ता फिरता हूं। अब भला सोचो कि कितनी महान है तुम्हारी अक्ल, जो मुझ नन्हें से जीव के उड़ने की परिभाषा भी न कर सकी।”

हंसता हुआ भंवरा पुन- अपनी डाल पर जा बैठा। एक पल केलिए वहां सन्नाटा छा गया। सन्नाटे को तोड़ते हुए शेर ने बात आगे बढ़ाई, “अब तो तुम्हें पता हो गया होगा नादान मनुष्य कि तुम इन जीवों से कितने महान हो? अब ज़रा तुम अपनी घमण्ड की चिमनी से उतरने की कोशिश करो और हमेशा इसबात का ध्यान रखा कि सभी जीवों में कुछ न कुछ मौलिक विशेषताएं पाई जाती हैं। सभी जीव आपस में बराबर होते हैं। न कोई किसी से छोटा होता है न कोई किसी से बड़ा। समझे?”

“लेकिन इसके बाद भी यदि तुम्हारा स्वभाव अगर नहीं बदला औरतुम जीव जन्तुओं को सताते रहे, तो तुम्हें इसकी कठोर से कठोर सज़ा मिलेगी।” कहते हाथी ने सलिल को अपनी सूंड़ में लपेटा और ज़ोर से ऊपर की ओर उछाल दिया।

सलिल ने डरकर अपनी आंखें बंद कर लीं। लेकिन जब उसने वापस अपनी आंखें खोलीं, तो न तो वह जंगल था और न ही वे जानवर। वह अपने बिस्तर पर लेटा हुआ...

“इसका मतलब है कि मैं सपना...” सलिल मन ही मन बड़बड़ाया। उसने अपनी अपनी पलकों को बंद कर लिया और करवट बदल ली। हाथी की कही हुई बातें अब भी उसके कानों में गूंज रही थीं।

लेखक- जाकिर अली 'रजनीश'

नाेट- कहानी में दिये गये सभी तथ्य पूर्णत: सत्य एवं प्रामाणिक हैं


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

9 पाठकों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

विज्ञान को बच्चों के लिये इसी तरह से परोसा जा सकता है। यह कहानी जितनी रुचिकर है उतनी ही शिक्षाप्रद भी। आपनें बच्चों के मन में पशु-पक्षियों से प्यार करने और उन्हे संरक्षित करने के बीज इस कहानी के माध्यम से भरने का प्रसंशनीय यत्न किया है। बहुत बधाई।


*** राजीव रंजन प्रसाद

रितु रंजन का कहना है कि -

सलिल के माध्यम से बच्चों को अक्ल का खूब पाठ पढाया आपने। कहानी पशु पक्षियों की एसी विषेषनाओं से भी परिचित कराती है जो बच्चों को भी कम ही पता होती हैं।

Sajeev का कहना है कि -

जाकिर भाई क्या खूब है, यह कहानी यह बाल उधान का अब तक सा सबसे श्रेष्ट प्रयास लगा मुझे, रोचक और ज्ञानवर्धक, अब लग रहा है की हिदी में सचमुच बाल साहित्य का सृजन हो रहा है,.

विश्व दीपक का कहना है कि -

जाकिर जी,
"छोटी-सी बात" के माध्यम से आपने बड़े-बड़ों को बड़ी-बड़ी बातें बता दी। कहानी इतने रोचक तरीके से लिखी हुई है कि बच्चे इससे जरूर हीं लाभांवित होंगे। सजीव जी ने सच हीं कहा है कि यह बाल-उद्यान की सबसे ज्ञानवर्धक कहानी है। आपकी अगली पेशकश के इंतजार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

रजनीश जी,

मैने ये शिक्षाप्रद कहानी आपके ब्लोग पर पढ़ी थी तब से मेरे दिमाग में ये ख्याल आ रहा था कि ये सुन्दर शिक्षाप्रद सन्देश लिये हुए जो आपकी रचना है बच्चों तक पहुँचे और आज इसको बाल-उद्यान पर देख प्रसन्नता हुई

बधाई

Alok Shankar का कहना है कि -

shuru ki do chaar panktiyan padhte hi lag gaya tha ki yah 'rajnish' ji ki rachna hai. vaakai aap jis tarah se kahaniyo ke madhyam se gyan baantate hain .. vah stutya hai.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

रजनीश जी बहुत सुंदर शिक्षाप्रद कहानी है ..यह बच्चो को ही नही बडों को भी अच्छी लगेगी मुझे बहुत पसंद आई ..बहुत बधाई। !!

SahityaShilpi का कहना है कि -

रजनीश जी!
बच्चों को किसी के बारे में जानकारी देने का यह शायद सबसे प्रभावी तरीका है कि उस बारे में उन्हें कहानी के माध्यम से बताया जाये. इससे उनका स्वस्थ मनोरंजन और साथ ही ज्ञानवर्धन भी होता है. आपकी यह रचना इस उद्देश्य को बहुत ही सुंदर तरीके से पूरा करती है.
इतनी सुंदर कहानी के लिये हार्दिक बधाई!

http://bal-kishor.blogspot.com/ का कहना है कि -
This comment has been removed by a blog administrator.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)