"*रेल*"
आओ बच्चो खेलें खेल
छुक-छुक छुक-छुक चलती रेल
मेरा इंजन सबको खींचे
सब जुड़ जाओ मेरे पीछे
बिना टिकिट चढ़ना मत कोई
आपस में लड़ना मत कोई
नदियां पर्वत बाग-बगीचे
सबको करती जाती पीछे
हिन्दू सिख या मुसलमान
सबका हक़ है एक समान
आओ प्यारे साथी आओ
जहाँ भी जाना हो चढ़ जाओ
मूंगफली,फल या हो खाना
इसमें कूड़ा मत फैलाना
अगर पास में हो सामान
रखना उसका पूरा ध्यान
जगह जगह पर जाती रेल
सबको सैर कराती रेल
प्यार बढ़ाती सबका सबसे
और कराती सबका मेल
आओ बच्चो खेलें खेल
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13 पाठकों का कहना है :
भुपेन्द्र जी,
बहुत सुंदर कविता, खेल का खेल और शिक्षा की शिक्षा।
बच्चों को रेल के द्वारा अच्छा संदेश दिया गया है। निम्न पंक्तियां तो बहुत ही सुन्दर हैं-
"बिना टिकिट चढ़ना मत कोई
आपस में लड़ना मत कोई
नदियां पर्वत बाग-बगीचे
सबको करती जाती पीछे
हिन्दू सिख या मुसलमान
सबका हक़ है एक समान"
बधाई।
भूपेंद्र जी..
बहुत अच्छी प्रस्तुति है, बच्चे निश्चित ही आनंद लेंगे। रेल बच्चों को हमेशा ही आकर्षित करती रही है उसपर आप इस काव्यात्मक प्रस्तुति जिसके द्वारा संदेश भी दे रहे हैं,के लिये बधाई के पात्र हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत मजेदार लगी रेल की यह कविता प्यारी
बच्चों जल्दी से आ के करो इस में सवारी :)
बहुत ख़ूब भूपेंद्र जी ...बधाई।
भूपेन्द्र जी
" नदियां पर्वत बाग-बगीचे
सबको करती जाती पीछे
हिन्दू सिख या मुसलमान
सबका हक़ है एक समान"
बहुत अच्छी प्रस्तुति है मेरे प्यारे भैया बहनों के लिये। और साथ में चित्रों ने तो शोभा दुगुणित कर दी
बधाई
मज़ा आ गया पढ़कर । मुझे भी रेल चलाने का मन हो आया :)
वाह भूपेन्द्र जी!
आपकी रेल की सवारी तो हमें भी बहुत अच्छी लगी!
राघव जी,
आपकी कविता पढ कर बचपन याद आ गया जब हम भी इसी तरह रेल बना सरपट दौड लगाते थे...बच्चों के लिये खेल का खेल और शिक्षा भी साथ में.... बधाई
क्या बात है राघवेन्द्र जी बचपन में आप और हम कहीं साथ-साथ पढ़े तो नही थे..मेरी रेल भी आपकी रेल से कुछ मिलती जुलती है और हम भी एसा ही गाया करते थे...हा हा हा वैसे मज़ा आ गया दोबारा रेल की सवारी करके...कविता में ही सही...
सुनीता(शानू)
Pranam,
Bachhon ke Priy Kavi RaghavG,
Aapki Rail badi lambi doori ki yatra karvayegi..
Baal man ko dhyan me rakhkar aapne khel-khel me badhiya shiksha di hai...
Badhaii..
Shubhkamnayein...
भूपेन्द्र,
ऐसे ही बाल-गीतों को लिखने की ज़रूरत है। पढ़ने पर आनंद तो आता ही है, साथ ही साथ संदेभ भी मिल जाता है।
Good poem
I pray to god you got everything in your life whatever you want
भुपेन्द्र जी,
बहुत सुंदर कविता,
आपकी रेल की सवारी बहुत अच्छी लगी..
नदियां पर्वत बाग-बगीचे
सबको करती जाती पीछे
हिन्दू सिख या मुसलमान
सबका हक़ है एक समान"
अच्छा संदेश ....
बधाई।
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