"बटरफ्लाई"
बटरफ़्लाई कहाँ से आयी
आओ चलो हमारे घर
कहाँ से रंगती हो तुम इतने
रंग रंगीले प्यारे पर
मेरा मन है मैं भी ऐसे
प्यारे पंख लगाऊँ फिर
नीले आसमान में मैं भी
दूर कहीं उड़ जाऊँ फिर
वादा मुझसे करो एक तुम
मुझे संग ले जाओगी
सुन्दर सुन्दर फूलों से तुम
मुझको भी मिलवाओगी
आने वाली है दीवाली
मिठाई खाने आना तुम
खीर पकायेंगे सब मिलकर
फूलों का रस लाना तुम
फिर होली आयेगी तब भी
होली खेलने आना जी
हरा बैगनी और बसंती
हाँ,पीला भी रंग लाना जी
मैने बोल दिया है माँ से
तितली रानी आयेगी
पिचकारी के रंग के बदले
बस,गुजिया भल्ले खायेगी
अब अपने इस आँगन में
गमले खूब लगाउंगी
अब हम दोनों दोस्त बन गये
तुमको रोज बुलाउंगी
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8 पाठकों का कहना है :
राघव जी..
मोहिदर जी का तितली बनाना सीखाना और आपकी ये कविता.. ये तो वो मिसाल हो गयी "सोने पे सुहागा"
सचमुच बहुत अच्छी कविता...
बधाई..
भूपेनद्र सिहं जी
मैने कल ही लिखा था तितली तो बन गई अब एक कविता भी लिख दो । आपने कैसे सुन लिया ?
अच्छी कविता लिखी है । बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी पसन्द आई । बधाई स्वीकारें ।
भूपेन्द्र जी,
बटरफ्लाई का प्रयोग अच्छा बन पडा है। तितली पर यह रंग-बिरंगी, दीप-दिये, मिठाई-गुझिये से सजी कविता अच्छी लगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तितली के परों के रंगो जैसा हो गया हमारा बाल उद्यान :)
कल बनाया था चित्र इसका आज किया इस का गुणगान
बहुत ही प्यारा बहुत ही सुंदर है यह रंग बिरंगा जहान
बधाई..
राघव जी,
रंग बिरंगी तितली और उस पर सुन्दर शब्दों से सजी कविता... मजा आ गया.
राघव जी..
सुन्दर कविता.... और....
रंग बिरंगी तितली
बहुत पसन्द आई
बधाई..
बहुत प्यारी कविता। बधाई।
Kavi Shree Raghav,
Purva ki kavitaon ki tarah hi Jeewan ke vibhinna Rang liye kavita Bado ke liye bhi achhi ban padi hai..
Ek baar phir aapko Badhaii..
Regards,
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