दादी माँ
बच्चों, हम सब को हमारी दादी माँ कई सारी कहानियाँ सु्नाया करती हैं। आज चलो हम उसी दादी माँ की हीं कहानी सुनते हैं, सुनते हैं कि वो हमें कितना प्यार करती है।
मुझको भाते मेरे पापा
और है मुझको भाती माँ,
हैं भाते हम तीनों जिनको
वो है मेरी दादी माँ।
पौ फटते उठ जाती है वो,
मुझे देख चैन पाती है वो,
दातून-वातून छोड़-छाड़के,
मुझे नहलाती-खिलाती है वो।
कभी गोद में ले बहलाती है,
कभी झूले में झूलाती है,
मैं जो कभी रूठ भी जाऊँ,
दे "लेमन जूस" मनाती है।
जब पापा आफिस जाते हैं,
दादी के पास वो आते हैं,
दादी के पैर जब वो छूते हैं
तो मुझको बहुत सुहाते हैं।
मेरी दादी सीधी, सच्ची है,
बड़ी भोली है, बड़ी अच्छी है,
मेरी माँ को बहुत चाहती है,
मेरी माँ तो उसकी बच्ची है।
मैं बड़ा जब हो जाऊँगा,
उसे गोद में ले घुमाऊँगा,
माँ-पापा ताली बजाएँगे,
इस तरह उसे सजाऊँगा।
मेरी दादी , बूढी दादी मेरी,
तुम हीं तो हो आबादी मेरी,
तुम जीवन भर संग रहना मेरे,
ओ दादी मेरी, शहजादी मेरी।
बच्चों , मुझे पता है कि दादी माँ कितनी प्यारी होती है। मैं अपनी दादी माँ को दस साल पहले खो चुका हूँ । आज उसकी याद आई तो सोचा कि तुम सब को तुम्हारी दादी माँ का महत्व बता दूँ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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6 पाठकों का कहना है :
तनहा जी,
माता-पिता का जीवन में अभिन्न स्थान है किंतु दादा-दादी, नाना-नानी जैसे अनुपम रिश्ते न्युक्लीयर फैमिली की भेंट चढते जा रहे हैं। एसे में दादी माँ के प्रति आपका प्रेम और यह अनुपम रचना आने वाली पीढी के लिये निश्चित ही प्रेरक है। सार्थक रचना की बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
दादी माँ हर बच्चे को बहुत प्यारी होती है , बहुत सुंदर तरीके से दीपक आपने इस को लिखा है
मुझे भी मेरी दादी माँ याद आ गई :)
दादी की आ गयी याद सुण कविता त्यारी
दादी माँ मेरी जग से प्यारी सबसे न्यारी..
दादी माँ मेरी....
झुरियों में वो लाख कहानी सांझ सवेरे
रहते थे हम खड़े दादी माँ को घेरे..
जाने कैसे निकल गयीं हम ठगे रह गये.
याद है अंतिम दादी माँ की विमान सवारी..
दादी माँ मेरी....
तन्हा हमको छोड़ गयी माँ 'तन्हा' भाई
कविता में छवि लेकर आज सामने आई
दर्शन मेरी दादी माँ का हो गया हमको
बरम्बार बधाई भाई ' तन्हा' तुमको.
बरम्बार बधाई ...............
बच्चों के लिये दादी मॉं की अहमियतबहुत होती है। अच्छा लगा पढ़कर
तनहा जी,
आपने तो दादी की याद दिला दी।
बहुत अच्छी कविता... आज की पीढी जैसे अपने मुल्यों को भुलते जा रहे है.. ये कविता उनके लिये प्रेरक साबित होगी... बधाई।
तन्हा जी,
सुन्दर शब्दों में आपने दादी मां की परिकल्पना को साकार किया है..
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